रंग सुबह का बिखरने लग गया
इक हसीं चेहरा उभरने लग गया
दूर हूँ जो आप से, तो यूँ लगा
वक़्त आहिस्ता गुज़रने लग गया
सीना-ए-शब पर खिला हैं चाँद फिर
जिस्म में खंज़र उतरने लग गया
इश्क में, बस ज़ख्म इक हासिल हुआ
ज़ख्म भी ऐसा के भरने लग गया
ज़िन्दगी का पैराहन जिस पल मिला,
वक़्त का चूहा कुतरने लग गया
आपका जो अक्स इस पर आ पड़ा
आइना देखो, सँवरने लग गया
इक हसीं चेहरा उभरने लग गया
दूर हूँ जो आप से, तो यूँ लगा
वक़्त आहिस्ता गुज़रने लग गया
सीना-ए-शब पर खिला हैं चाँद फिर
जिस्म में खंज़र उतरने लग गया
इश्क में, बस ज़ख्म इक हासिल हुआ
ज़ख्म भी ऐसा के भरने लग गया
ज़िन्दगी का पैराहन जिस पल मिला,
वक़्त का चूहा कुतरने लग गया
आपका जो अक्स इस पर आ पड़ा
आइना देखो, सँवरने लग गया
रंग सुबह का बिखरने लग गया
ReplyDeleteइक हसीं चेहरा उभरने लग गया
वाह साहिल साहब ... वाह !
क्या खूबसूरत मतला कहा है
बाक़ी शेर भी पढने लाइक हैं
और रदीफ़ ... अपना अलग मज़ा दे रही है !!
बेहतरीन ग़ज़ल....
ReplyDeleteबहुत खूब साहिल साहब, बहुत उम्दा ग़ज़ल... हर शेर लाजवाब है...
ReplyDelete'ज़ख़्म भी ऐसा के भरने लग गया' वाह वाह, क्या खूब अलग सी रंगत है इस शेर में, इश्क से मिले ज़ख़्म से भी मुहब्बत, क्या बात है !!!
और यह शेर 'ज़िन्दगी का पैराहन जिस पल मिला...' किस खूबसूरती से इतनी बड़ी हकीकत बयाँ की आपने, बहुत बढ़िया !!!
बहुत सी शुभकामनाएं ऐसे चुनिन्दा मोती पिरोते रहने के लिए !!!
सीना-ए-शब पर खिला है चाँद फिर
ReplyDeleteजिस्म में खंज़र उतरने लग गया |
बेहतरीन शेर ...उम्दा ग़ज़ल
दूर हूँ जो आपसे तो यूँ लगा ...
ReplyDeleteक्या बात है साहिल जी ... गज़ब का शेर है इस लाजवाब गज़ल का ..
और ये शेर ... जिंदगी का पैरहन जिस पल मिला ... बहुत ही उम्दा ... नए अंदाज़ का शेर है ...
मज़ा आ गया पूरी तरह गज़ल की प्यास मिट गई ...
choohe wala sher bahut achcha laga. poori gazal bhi pasand aayi.
ReplyDeleteye gazal bhi bahut hi umda hai
ReplyDeleteBhut bhut sunder
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