January 02, 2014

अगर ऐसा नहीं वैसा हुआ तो?

नही बरसी मगर छाई घटा तो
ज़मीं को दे गयी इक हौसला तो!


न कुछ मैंने किया इस कश्मकश में
अगर ऐसा नहीं वैसा हुआ तो? 

किये हैं बंद सारे रास्ते, पर
जबर्दस्ती वो दिल में आ गया तो? 

हुई मुद्दत तेरी जानिब चला था
मगर पहले सा है ये फासला तो!

ये माना मैंने तू ज़ालिम नहीं है
मगर चुप क्यूँ रहा, कुछ बोलता तो!

हसीं से ज़ख्म, यादें महकी महकी
मैं खुश हूँ वो मुझे कुछ दे गया तो!

May 30, 2013

इन लबों की तिश्नगी न यूँ बुझा

दिल की आग को अभी न यूँ बुझा
ये उम्मीद आखिरी, न यूँ बुझा


जीत जाए फिर कहीं न तीरगी
चाँद! अपनी चांदनी न यूँ बुझा


फिर मज़ा न प्यास का मैं ले सकूँ
इन लबों की तिश्नगी न यूँ बुझा

ऐतबार के दीये, ऐ बेवफा!
फिर न जल सकें कभी, न यूँ बुझा

चश्म-ए-आफताब मुझ से यूँ न फेर
राह की ये रौशनी, न यूँ बुझा


September 22, 2012

मुक्तक

हैरतों में ये उजाला पड़ गया
जुगनुओं के मुंह पे ताला पड़ गया
आपकी उजली हंसी को देखकर
चाँद का भी रंग काला पड़ गया

 
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खिज़ा में भी फिज़ा के कुछ इशारे मिल ही जाते हैं
अँधेरी रात हो कितनी, सितारे मिल ही जाते हैं
जिसे तेरी मुहब्बत के सहारे मिल गए, उसको
बहुत हो तेज़ तूफां, पर किनारे मिल ही जाते हैं



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जाने क्यूँ झूठा तराना लिख रहे हो
मौसमों को आशिकाना लिख रहे हो
इक परिंदे सा क़फ़स में कैद हूँ मैं
आप इसको आशियाना लिख रहे हो!

April 25, 2012

आईने के पास जाने से बचे

रस्म-ए-दुनिया को निभाने से बचे,
किस तरह कोई ज़माने से बचे?
 
दोस्तों की सब हकीकत थी पता
इसलिए तो आज़माने से बचे
 
सांस को मैं रोक लूँ कुछ देर, पर
वक़्त कब ऐसे बचाने से बचे

वो भी खुल के कब मिला हमसे कभी
हाल-ए-दिल हम भी सुनाने से बचे
 
जब भी 'साहिल' याद आयें हैं गुनाह,
आईने के पास जाने से बचे
 

January 04, 2012

मेरे लिए फिर सहर है आगे

बहुत सुहाना सफ़र है आगे
के फिर उसी का शहर है आगे

मुझे पता है, सियाह रातों
मेरे लिए फिर सहर है आगे

लगी हुई है जो भीड़ इतनी,
किसी दीवाने का घर है आगे

सफ़र समंदर का, मत शुरू कर
जो डूब जाने का डर है आगे

ये चलना 'साहिल' भी क्या है चलना
ख्याल पीछे, नज़र है आगे


November 28, 2011

जिस्म में खंज़र उतरने लग गया

रंग सुबह का बिखरने लग गया
इक हसीं चेहरा उभरने लग गया

दूर हूँ जो आप से, तो यूँ लगा
वक़्त आहिस्ता गुज़रने लग गया

सीना-ए-शब पर खिला हैं चाँद फिर
जिस्म में खंज़र उतरने लग गया

इश्क में, बस ज़ख्म इक हासिल हुआ
ज़ख्म भी ऐसा के भरने लग गया

ज़िन्दगी का पैराहन जिस पल मिला,
वक़्त का चूहा कुतरने लग गया

आपका जो अक्स इस पर आ पड़ा
आइना देखो, सँवरने लग गया

November 08, 2011

दुनिया से हरदम मिलते हैं, खुद से लेकिन कम मिलते हैं


दुनिया से हरदम मिलते हैं
खुद से लेकिन कम मिलते हैं


आशिक हैं वो, सुबह-सवेरे
जिनके तकिये नम मिलते हैं

जब भी देखूं तेरा चेहरा
ज़ख्मों को मरहम मिलते हैं

वो क्या जाने प्यास हमारी,
जिनको जाम-ओ-जम मिलते हैं

तेरी यादों से, आँखों को,
बारिश के मौसम मिलते हैं

'साहिल', हैं सब कहने वाले
सुनने वाले, कम मिलते हैं


October 07, 2011

मैं भी जिम्मेवार हूँ हालात का

क्यूँ बुरा मानूं किसी की बात का?
मैं भी जिम्मेवार हूँ हालात का

हुक्मरां उसको न माने दिल मेरा
सर पे जिसके ताज है खैरात का

मै अभी सूखे से उबरा ही न था,
घर में पानी आ गया बरसात का

फूल, भंवरे, रात, जुगनू, चांदनी
शुक्रिया! मेरे खुदा सौगात का

फिर शफ़क़ ने दूर कर दी तीरगी
सुर्ख मुंह है फिर शरम से रात का


September 09, 2011

इस मरुस्थल को नदी की धार दो

गीली माटी हूँ, मुझे आकार दो
मेरे जीवन को कोई आधार दो

घाव दो या अश्रुओं का हार दो
जो उचित हो प्रेम में, उपहार दो

फिर धरा पर प्रेम बन बरसो कभी
इस मरुस्थल को नदी की धार दो

मोर को सावन, भंवर को फूल दो

सबको अपने हिस्से का संसार दो


स्वप्न के पंछी नयन-पिंजरे में हैं,
दो इन्हें आकाश का विस्तार दो

हूँ अगर जीवित तो तट पर क्या करूँ?

मेरी नैया को कोई मझधार दो

August 12, 2011

चीख बैठे बेज़ुबां तक

इस ज़मीं से आसमां तक
तू दिखे, देखूं जहां तक

उसने बेशक ना सुना हो
बात तो आई जुबां तक

मैं तो तन्हा था मुसाफिर
लुट गए याँ कारवां तक

यूँ चिराग-ए-शब बुझा था,
हाथ न आया धुआं तक

हद सितम की हो गयी अब,
चीख बैठे बेज़ुबां तक


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