November 24, 2010

ख़त तुझे मैंने बेहिसाब लिखे

कोई ऐसी भी इक किताब लिखे
सब सवालों के सब जवाब लिखे

हमने काली स्याह रात में भी
जगमगाते हुए से ख्वाब लिखे

कोई चेहरा भला पढूं कैसे
सबके चेहरों पे हैं नकाब लिखे

अब यहाँ हो रही नीलाम कलम
कौन है जो के इन्कलाब लिखे

कोई माली है जो नसीब लिखे
कहीं कांटे कहीं गुलाब लिखे

ये अलग बात, भेजता ही नहीं 
ख़त तुझे मैंने बेहिसाब लिखे

जाने 'साहिल' तुझे हुआ क्या है
इक ज़रा मौज को सैलाब लिखे
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