October 21, 2010

त्रिवेणियाँ

भीगा भीगा है सुबह का आँचल
हर कली ओस में नहाई है
रात रोई है रात-भर शायद


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इस कदर स्याह है आज रात का रंग
चांदनी है न इक सितारा है
किसके अश्कों में घुल गया काजल

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बंद आँखों से सुन लिया मैंने 
कुछ किताबों का इल्म लोगों से
अब में दैर-ओ-हरम में उलझा हूँ 

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आज दिल की किताब झाड़ी तो
तेरी यादों की धूल उड़ती है
छींक तुझको भी आई तो होगी


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