May 30, 2013

इन लबों की तिश्नगी न यूँ बुझा

दिल की आग को अभी न यूँ बुझा
ये उम्मीद आखिरी, न यूँ बुझा


जीत जाए फिर कहीं न तीरगी
चाँद! अपनी चांदनी न यूँ बुझा


फिर मज़ा न प्यास का मैं ले सकूँ
इन लबों की तिश्नगी न यूँ बुझा

ऐतबार के दीये, ऐ बेवफा!
फिर न जल सकें कभी, न यूँ बुझा

चश्म-ए-आफताब मुझ से यूँ न फेर
राह की ये रौशनी, न यूँ बुझा


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