दिल की आग को अभी न यूँ बुझा
ये उम्मीद आखिरी, न यूँ बुझा
जीत जाए फिर कहीं न तीरगी
चाँद! अपनी चांदनी न यूँ बुझा
फिर मज़ा न प्यास का मैं ले सकूँ
इन लबों की तिश्नगी न यूँ बुझा
ऐतबार के दीये, ऐ बेवफा!
फिर न जल सकें कभी, न यूँ बुझा
चश्म-ए-आफताब मुझ से यूँ न फेर
राह की ये रौशनी, न यूँ बुझा