September 28, 2010

ये कीलों से छलनी दीवारों से पूछो

उजालों की कीमत शरारों से पूछो
जलें उम्र भर जो, सितारों से पूछो

होता है क्या यारो, दर्द-ए-जुदाई
ये दरिया के दोनों किनारों से पूछो

क्यों गुलसितां में हैं लाशें गुलों की
ये अब के बरस तुम, बहारों से पूछो 

टंगी है जो तस्वीर, कितनी है दिलकश
ये कीलों से छलनी दीवारों से पूछो

है 'साहिल' उन्हें तुमसे  कितनी मुहब्बत
न यूँ आज़माओ, न यारों से पूछो

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शरारों = चिंगारियां

September 13, 2010

नाखुदा ही कश्तियाँ डुबा गए

खवाब की तरह हमें भुला गए
अश्क बन के आँख में समां गए
 

रंजिशें दैर-ओ-हरम की थी मगर,
लोग मेरा मैकदा जला गए


खुद को भूल कर, खुदा तलाशने
लोग जाने सब कहाँ कहाँ गए
 

उम्र भर बचा किये तूफ़ान से
नाखुदा ही कश्तियाँ डुबा गए


ख़ुदकुशी से डर रहा था मैं ज़रा
दोस्त मेरे हौसला दिला गए

खुद से छुप रहा था मैं, तो आप क्यों?
हाथ में ये आइना थमा गए

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रंजिश = दुश्मनी
दैर-ओ-हरम = मंदिर और मस्जिद
नाखुदा = नाविक
 

September 03, 2010

इसलिए तो चाँद सारा गुम

मेरी किस्मत का सितारा गुम रहा
था मुझे जिसका सहारा गुम रहा

अब जनाज़े पर चला है शौक से

जीते जी क्यों शहर सारा गुम रहा

फिर नहीं अपनाएंगे  ऐ दिल! तुझे

इस कदर जो तू दोबारा गुम रहा

ज़ुल्फ़ आधी खोल के वो सो गए

इसलिए तो चाँद सारा गुम रहा

जिसने वादा साथ चलने का किया

हमसफ़र वो ही हमारा गुम रहा

आखिरी शब तेरी गलियों में दिखा

और फिर 'साहिल' आवारा गुम रहा

कुछ तो खुदा अपनी ज़ुबानी, तुम कहो!

ऐ दोस्त! कुछ अपनी कहानी तुम कहो
मेरी वही है जिंदगानी, तुम कहो!

मेरी तो गुज़री उसकी गलियों में हुज़ूर

कुछ अपनी रफ्ता-ऐ-जवानी, तुम कहो!

वाइज़ से सुनते आये हैं किस्से तेरे

कुछ तो खुदा अपनी ज़ुबानी, तुम कहो!

उसका तो जाना तए ही था इक रोज़, फिर

क्यों आँख से बहता है पानी, तुम कहो!

कुछ तो अनोखी बात हो तुम में ज़रा

'साहिल' क्यों ग़ज़लें पुरानी, तुम कहो!

September 02, 2010

इंसानों ने महफ़िल में इंसान सजा के रक्खा

यूँ तो घर में, मंदिर में, भगवान् सजा के रक्खा है
बिकने को बाजारों में ईमान सजा के रक्खा है

तुम मानो या न मानो पर हमने ये भी देखा है
इंसानों ने महफ़िल में इंसान सजा के रक्खा है

दिल में इतने ग़म हैं फिर भी होंठ नहीं भूले हंसना

तेरी यादों से दिल का शमशान सजा के रक्खा है

मेरी ग़ज़लें मेरे नगमे काश के तू भी पढ़ लेता
मैंने तेरी खातिर ये दीवान सजा के रक्खा है

'साहिल' अपनी कश्ती कैसे पार भला अब उतरेगी

मौजों ने जो सीने पर तूफ़ान सजा के रक्खा है

बंजारों से बेघर अब तक

देखो कैसा मंज़र अब तक
सारी धरती बंजर अब तक

राम आयेंगे कितने युग में

आहिल्या है पत्थर अब तक

कुछ ख़्वाबों ने आँखें छोड़ी

बंजारों से बेघर अब तक

वो जाता हैं कातिल मेरा

हाथों मैं है खंज़र अब तक

'साहिल' उनका रस्ता देखा

वो न आये कहकर अब तक
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