January 24, 2011

घर जलाने को लोग फिर आये


दिल दुखाने को लोग फिर आये
आज़माने को लोग फिर आये

एक किस्सा मैं भूल बैठा था,
दोहराने को लोग फिर आये

साथ देंगे ये बस घड़ी भर का
लौट जाने को लोग फिर आये

मंदिरों-मस्जिदों की बातों पर
घर जलाने को लोग फिर आये

हादसों को भुला के, महफ़िल में
हंसने-गाने को लोग फिर आये

फिर कतारें हैं दर पे कातिल के
सर कटाने को लोग फिर आये

'दूध के सब जले हैं' ये लेकिन,
धोखा खाने को लोग फिर आये

रास आया इन्हें न 'साहिल' तू,
डूब जाने को लोग फिर आये
 
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