September 13, 2010

नाखुदा ही कश्तियाँ डुबा गए

खवाब की तरह हमें भुला गए
अश्क बन के आँख में समां गए
 

रंजिशें दैर-ओ-हरम की थी मगर,
लोग मेरा मैकदा जला गए


खुद को भूल कर, खुदा तलाशने
लोग जाने सब कहाँ कहाँ गए
 

उम्र भर बचा किये तूफ़ान से
नाखुदा ही कश्तियाँ डुबा गए


ख़ुदकुशी से डर रहा था मैं ज़रा
दोस्त मेरे हौसला दिला गए

खुद से छुप रहा था मैं, तो आप क्यों?
हाथ में ये आइना थमा गए

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रंजिश = दुश्मनी
दैर-ओ-हरम = मंदिर और मस्जिद
नाखुदा = नाविक
 
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