इतना न रो के ये नमी अच्छी नहीं लगती मुझे
फिर इस अँधेरी रात में, सोना नहीं भाता मुझे
ये चार दिन की चांदनी अच्छी नहीं लगती मुझे
खोया हूँ उसकी याद में, बाद-ऐ-सबा न शोर कर
वक़्त-ऐ-इबादत दिल्लगी अच्छी नहीं लगती मुझे
तेरे लिए छुपता फिरूं मैं कब तलक यूँ मौत से
इतनी तो तू ऐ ज़िन्दगी! अच्छी नहीं लगती मुझे
मैंने ये पूछा 'आप क्यों पढ़ते नहीं मेरी ग़ज़ल?'
वो हंस के बोले 'बस यूँ ही, अच्छी नहीं लगती मुझे'
कहता है दिल की बात क्यों 'साहिल' भला तू गैर से,
बस इक यही आदत तेरी अच्छी नहीं लगती मुझे
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बाद-ऐ-सबा = सुबह की हवा, morning breeze