नही बरसी मगर छाई घटा तो
ज़मीं को दे गयी इक हौसला तो!
न कुछ मैंने किया इस कश्मकश में
ज़मीं को दे गयी इक हौसला तो!
न कुछ मैंने किया इस कश्मकश में
किये हैं बंद सारे रास्ते, पर
हुई मुद्दत तेरी जानिब चला था
मगर पहले सा है ये फासला तो!
ये माना मैंने तू ज़ालिम नहीं है
ये माना मैंने तू ज़ालिम नहीं है
मगर चुप क्यूँ रहा, कुछ बोलता तो!
हसीं से ज़ख्म, यादें महकी महकी
मैं खुश हूँ वो मुझे कुछ दे गया तो!हसीं से ज़ख्म, यादें महकी महकी
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शुक्रवार (03-01-2014) को "एक कदम तुम्हारा हो एक कदम हमारा हो" (चर्चा मंच:अंक-1481) पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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ईस्वीय सन् 2014 की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर।
ReplyDeleteसुप्रभात।
नववर्ष में...
स्वस्थ रहो प्रसन्न रहो।
आपका दिन मंगलमय हो।
बेहतरीन अभिवयक्ति.....
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा ... गज़ल का आगाज़ इतना लाजवाब ... की अंत तक बांधे रक्खा ...
ReplyDeleteबधाई ...
bahut badhiya gazal hai bhai
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