तुम मिलो गर, तो मैं संवर जाऊँ
ज़ख्म हूँ इक, ज़रा सा भर जाऊँ
बन के दरिया भटक रहा कब से,
कोई सागर मिले, उतर जाऊँ
राह में फिर तेरा ही कूचा है
सोचता हूँ, रुकूँ, गुज़र जाऊँ?
भूखे बच्चों का सामना होगा
हाथ खाली हैं, कैसे घर जाऊँ?
दो घड़ी सांस भी न लेने दे,
वक़्त ठहरे, तो मैं ठहर जाऊँ
डूब जाऊं अगर तूफानों में
बन के 'साहिल' मैं फिर उभर जाऊं
ज़ख्म हूँ इक, ज़रा सा भर जाऊँ
बन के दरिया भटक रहा कब से,
कोई सागर मिले, उतर जाऊँ
राह में फिर तेरा ही कूचा है
सोचता हूँ, रुकूँ, गुज़र जाऊँ?
भूखे बच्चों का सामना होगा
हाथ खाली हैं, कैसे घर जाऊँ?
दो घड़ी सांस भी न लेने दे,
वक़्त ठहरे, तो मैं ठहर जाऊँ
डूब जाऊं अगर तूफानों में
बन के 'साहिल' मैं फिर उभर जाऊं