मेरी किस्मत का सितारा गुम रहा
था मुझे जिसका सहारा गुम रहा
अब जनाज़े पर चला है शौक से
जीते जी क्यों शहर सारा गुम रहा
फिर नहीं अपनाएंगे ऐ दिल! तुझे
इस कदर जो तू दोबारा गुम रहा
ज़ुल्फ़ आधी खोल के वो सो गए
इसलिए तो चाँद सारा गुम रहा
जिसने वादा साथ चलने का किया
हमसफ़र वो ही हमारा गुम रहा
आखिरी शब तेरी गलियों में दिखा
और फिर 'साहिल' आवारा गुम रहा
था मुझे जिसका सहारा गुम रहा
अब जनाज़े पर चला है शौक से
जीते जी क्यों शहर सारा गुम रहा
फिर नहीं अपनाएंगे ऐ दिल! तुझे
इस कदर जो तू दोबारा गुम रहा
ज़ुल्फ़ आधी खोल के वो सो गए
इसलिए तो चाँद सारा गुम रहा
जिसने वादा साथ चलने का किया
हमसफ़र वो ही हमारा गुम रहा
आखिरी शब तेरी गलियों में दिखा
और फिर 'साहिल' आवारा गुम रहा
साहिल साहब
ReplyDeleteनमस्कार !
बहुत शानदार रवां दवां ग़ज़ल लिखी है जनाब !
मुबारकबाद क़बूल फ़रमाएं ।
ज़ुल्फ़ आधी खोल के वो सो गए
इसलिए तो चांद सारा गुम रहा
मर गए हम इस शे'र पर …
वैसे पूरी ग़ज़ल क़ाबिले-ता'रीफ़ है ।
- राजेन्द्र स्वर्णकार
तिरे शेर कहने की अदा पर
ReplyDeleteगो दिल हमारा गम हुआ....!!
राजेंद्र जी, नमस्कार
ReplyDeleteआप जैसे फनकार को यहाँ पाकर बहुत ख़ुशी हुई. दाद के लिए शुक्रिया, आते रहिए.
...साहिल
भूतनाथ जी, आपकी टिपण्णी पढ़ के ख़ुशी हुई. और आपका नाम पढ़ कर थोडा डर लगा.
ReplyDeleteआते रहिये, खुश रहिये!
अच्छी ग़ज़ल
ReplyDeleteकापी नहीं हो रही वर्ना शेर अवश्य चुनकर भेजता
फिर भी मेरा जवाब ही सही
दोस्त जो इस बार आकर मिल गया
वह न जाने अब तलक क्यों गुम रहा
जाहिद साहब, यहाँ आने का बहुत शुक्रिया. आपका जवाब भी लाजवाब लगा.
ReplyDeleteSaahil
खूबसूरत!
ReplyDeleteआशीष
--
बैचलर पोहा!!!
@Ashish
ReplyDeleteदाद के लिए शुक्रिया !
aap ki gajal sach mai damdar hai
ReplyDeletesubhkamnaye aapko
शुक्रिया दीप्ति जी
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