हमराही पर पूर्वप्रकाशित
कब से ये काँटों में हैं, क्यों ज़ख्म खाए हैं गुलाब?
अपने खूँ के लाल रंगों में नहाये हैं गुलाब।
फर्क इतना है हमारी और उसकी सोच में,
उसने थामी हैं बंदूकें, हम उठाये हैं गुलाब।
होश अब कैसे रहे, अब लड़खड़ाएँ क्यों न हम,
घोल कर उसने निगाहों में, पिलाये हैं गुलाब।
अब असर होता नहीं गर पाँव में काँटा चुभे,
ज़िन्दगी तूने हमें ऐसे चुभाये हैं गुलाब।
कुछ पसीने की महक, कुछ लाल मेरे खूँ का रंग,
तब कहीं जाकर ज़मीं ने ये उगाये हैं गुलाब।
खार होंगे, संग होंगे, और होगा क्या वहां?
इश्क की गलियों में 'साहिल' किसने पाए हैं गुलाब?
कब से ये काँटों में हैं, क्यों ज़ख्म खाए हैं गुलाब?
अपने खूँ के लाल रंगों में नहाये हैं गुलाब।
फर्क इतना है हमारी और उसकी सोच में,
उसने थामी हैं बंदूकें, हम उठाये हैं गुलाब।
होश अब कैसे रहे, अब लड़खड़ाएँ क्यों न हम,
घोल कर उसने निगाहों में, पिलाये हैं गुलाब।
अब असर होता नहीं गर पाँव में काँटा चुभे,
ज़िन्दगी तूने हमें ऐसे चुभाये हैं गुलाब।
कुछ पसीने की महक, कुछ लाल मेरे खूँ का रंग,
तब कहीं जाकर ज़मीं ने ये उगाये हैं गुलाब।
खार होंगे, संग होंगे, और होगा क्या वहां?
इश्क की गलियों में 'साहिल' किसने पाए हैं गुलाब?
"kuch paseene ki mehak, kuch laal mere khun ka rang,
ReplyDeletetab kahin jaakar zamin ne ugaye hain gulaab.
khaar honge, sang honge, aur honga kya wahan,
ishq ki galiyon mein 'saahil' kisne payen hain gulab?"
bahut khub
खार होंगे, संग हांेगे, और होगा क्या वहँा
ReplyDeleteइश्क की गलियो मे साहिल किसने पाए हैं गुलाब
वाह साहब वाह
waah bhai,bahut pyari bilkul gulab si gazal..............
ReplyDeleteacchi ghazal hui hai sahil babu....
ReplyDeleteकुछ पसीने की महक कुछ लाल मेरे खूॅ का रगं
ReplyDeleteतब कहीं जाकर जमीं ने ये उगाये है गुलाब।
शानदार शेर और एक मुकम्मल गजल। आभार।
bahut khoob sahil sahab ! kuchh sheron par to beshakhta waahhh nikali dil se !
ReplyDeleteumda kalaam !
ishq ki galiyon mein sahil kisne paaye hain gulaab....wahhh!!!!! bohot khoob dost
ReplyDeletesahil ji,
ReplyDeleteishq ki galiyo me gulaab nahi milte, gulaab se ishq ki galiyaan milti hain.........
badan gulabi, paushaak gulaabi, honth gulaabi, chehra gulaabi......to galiyaan gulaabi nahi hongi kya??????
har taraf gulabi-gulabi, pinky pinky hai.....aur sabhi kaante in gulaabon ke peeche paagal hain............
साहिल साहेब इस बेहतरीन ग़ज़ल के मकते ने दिल लूट लिया...वाह...लाजवाब...
ReplyDeleteनीरज
खार होंगे, संग हांेगे, और होगा क्या वहँा
ReplyDeleteइश्क की गलियो मे साहिल किसने पाए हैं गुलाब
वाह...वाह.....
क्या बात है ......
हर एक शे'र सीधे दिल में उतरता है .....
सुभानाल्लाह ......!!
हर शेर गहरे अर्थ संप्रेषित करता है ..आपका आभार
ReplyDeleteप्रेम की पराकाष्ठा और समर्पण । उम्दा ग़ज़ल
ReplyDeleteवाह वाह... क्या बात है ! हर शेर अपने आप में लाजवाब, बिलकुल गुलाब की तरह,
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ग़ज़ल !!!
फर्क इतना है हमारी और उसकी सोच में,
ReplyDeleteउसने थामी हैं बंदूकें, हम उठाये हैं गुलाब।.....
बहुत खूबसूरत शेर....
लाजवाब ग़ज़ल...
हार्दिक बधाई।
कब से ये काँटों में हैं, क्यों ज़ख्म खाए हैं गुलाब?
ReplyDeleteअपने खूँ के लाल रंगों में नहाये हैं गुलाब।........
सभी शेर एक से बढ़कर एक.....
वाह!..........
क्या लाजवाब ग़ज़ल कही है.
साहिल साहब ... लाजवाब ग़ज़ल है हर शेर कमाल का ...
ReplyDeleteनव-संवत्सर और विश्व-कप दोनो की हार्दिक बधाई .
ReplyDeleteभाई गुलाब के फूल को ले कर बेहतरीन ग़ज़ल पेश की है आपने| खास कर मकते वाला शेर तो भाई सुभानअल्लाह है| मुबारक हो|
ReplyDeleteकुछ पसीने की महक कुछ लाल मेरे खूँ का रंग
ReplyDeleteतब कहीं जाकर जमीं ने ये उगाये है गुलाब।
बेहतरीन है यह अन्दाज और नज़रिया
रामनवमी की हार्दिक शुभकामनायें.
ReplyDeleteउम्दा ग़ज़ल .....हर शेर लाजवाब
ReplyDeleteशानदार गज़ल .....हर शेर लाजवाब है
ReplyDeleteBahut hi kathin radeef pe aapne bahut hi khoobsoorat ghazal likh di hai! Bahut mubaarakbaad!
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