September 03, 2010

इसलिए तो चाँद सारा गुम

मेरी किस्मत का सितारा गुम रहा
था मुझे जिसका सहारा गुम रहा

अब जनाज़े पर चला है शौक से

जीते जी क्यों शहर सारा गुम रहा

फिर नहीं अपनाएंगे  ऐ दिल! तुझे

इस कदर जो तू दोबारा गुम रहा

ज़ुल्फ़ आधी खोल के वो सो गए

इसलिए तो चाँद सारा गुम रहा

जिसने वादा साथ चलने का किया

हमसफ़र वो ही हमारा गुम रहा

आखिरी शब तेरी गलियों में दिखा

और फिर 'साहिल' आवारा गुम रहा

कुछ तो खुदा अपनी ज़ुबानी, तुम कहो!

ऐ दोस्त! कुछ अपनी कहानी तुम कहो
मेरी वही है जिंदगानी, तुम कहो!

मेरी तो गुज़री उसकी गलियों में हुज़ूर

कुछ अपनी रफ्ता-ऐ-जवानी, तुम कहो!

वाइज़ से सुनते आये हैं किस्से तेरे

कुछ तो खुदा अपनी ज़ुबानी, तुम कहो!

उसका तो जाना तए ही था इक रोज़, फिर

क्यों आँख से बहता है पानी, तुम कहो!

कुछ तो अनोखी बात हो तुम में ज़रा

'साहिल' क्यों ग़ज़लें पुरानी, तुम कहो!
Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...