दिल दुखाने को लोग फिर आये
आज़माने को लोग फिर आये
एक किस्सा मैं भूल बैठा था,
दोहराने को लोग फिर आये
साथ देंगे ये बस घड़ी भर का
लौट जाने को लोग फिर आये
मंदिरों-मस्जिदों की बातों पर
घर जलाने को लोग फिर आये
हादसों को भुला के, महफ़िल में
हंसने-गाने को लोग फिर आये
फिर कतारें हैं दर पे कातिल के
सर कटाने को लोग फिर आये
'दूध के सब जले हैं' ये लेकिन,
धोखा खाने को लोग फिर आये
रास आया इन्हें न 'साहिल' तू,
डूब जाने को लोग फिर आये