January 24, 2011

घर जलाने को लोग फिर आये


दिल दुखाने को लोग फिर आये
आज़माने को लोग फिर आये

एक किस्सा मैं भूल बैठा था,
दोहराने को लोग फिर आये

साथ देंगे ये बस घड़ी भर का
लौट जाने को लोग फिर आये

मंदिरों-मस्जिदों की बातों पर
घर जलाने को लोग फिर आये

हादसों को भुला के, महफ़िल में
हंसने-गाने को लोग फिर आये

फिर कतारें हैं दर पे कातिल के
सर कटाने को लोग फिर आये

'दूध के सब जले हैं' ये लेकिन,
धोखा खाने को लोग फिर आये

रास आया इन्हें न 'साहिल' तू,
डूब जाने को लोग फिर आये
 

January 17, 2011

उस को माज़ी का कुछ ख्याल रहा

तेरी यादों का दिल पे जाल रहा
ज़ख्म पर रेशमी रुमाल रहा

खुद ही दिल से तुझे निकाला था,
ये अलग बात के मलाल रहा

एक बस तुझ से ही तवक्को थी
ऐ खुदा! तू भी बेख्याल रहा

अच्छा होगा, कहा था वाइज़ ने
पहले जैसा मगर ये साल रहा

तूने लिक्खे तो हैं जवाब कई
दिल में लेकिन वही सवाल रहा

शुक्र है, हंस के वो मिला 'साहिल'
उस को माज़ी का कुछ ख्याल रहा

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तवक्को = उम्मीद, expectation , hope
वाइज़ = preacher
माज़ी = गुज़रा वक़्त, past



January 07, 2011

मेरे दामन से उलझे हैं, खिज़ां के ख़ार बाकी हैं

हमारी ज़िन्दगी के अब जो दिन दो चार बाकी हैं
न हो दीदार-ऐ-हुस्न-ऐ-यार तो बेकार बाकी हैं

न बदली फितरत-ऐ-लैला-ओ-कैस-ओ-शीरी-ओ-
फरहाद
वही आशिक हैं ज़िन्दा, उनके कारोबार बाकी हैं

मैं कैसे लुत्फ़ लूं यारो, अभी अब्र-ऐ-बहारां का
मेरे दामन से उलझे हैं, खिज़ां के ख़ार बाकी हैं

हबीबों के सितम से इस कदर घबरा न मेरे दिल!
अभी तो इस जहाँ में कुछ मेरे अगयार बाकी हैं

ऐ 'साहिल', इस जहाँ में बस तेरी हस्ती इसी से है
के तू बाकी है जब तक ये तेरे अशआर बाकी हैं



खार = कांटें
फितरत = nature
अब्र-ऐ-बहारां = बहार के बादल
हबीब = दोस्त
अगयार = दुश्मन, rival
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