November 28, 2011

जिस्म में खंज़र उतरने लग गया

रंग सुबह का बिखरने लग गया
इक हसीं चेहरा उभरने लग गया

दूर हूँ जो आप से, तो यूँ लगा
वक़्त आहिस्ता गुज़रने लग गया

सीना-ए-शब पर खिला हैं चाँद फिर
जिस्म में खंज़र उतरने लग गया

इश्क में, बस ज़ख्म इक हासिल हुआ
ज़ख्म भी ऐसा के भरने लग गया

ज़िन्दगी का पैराहन जिस पल मिला,
वक़्त का चूहा कुतरने लग गया

आपका जो अक्स इस पर आ पड़ा
आइना देखो, सँवरने लग गया

November 08, 2011

दुनिया से हरदम मिलते हैं, खुद से लेकिन कम मिलते हैं


दुनिया से हरदम मिलते हैं
खुद से लेकिन कम मिलते हैं


आशिक हैं वो, सुबह-सवेरे
जिनके तकिये नम मिलते हैं

जब भी देखूं तेरा चेहरा
ज़ख्मों को मरहम मिलते हैं

वो क्या जाने प्यास हमारी,
जिनको जाम-ओ-जम मिलते हैं

तेरी यादों से, आँखों को,
बारिश के मौसम मिलते हैं

'साहिल', हैं सब कहने वाले
सुनने वाले, कम मिलते हैं


October 07, 2011

मैं भी जिम्मेवार हूँ हालात का

क्यूँ बुरा मानूं किसी की बात का?
मैं भी जिम्मेवार हूँ हालात का

हुक्मरां उसको न माने दिल मेरा
सर पे जिसके ताज है खैरात का

मै अभी सूखे से उबरा ही न था,
घर में पानी आ गया बरसात का

फूल, भंवरे, रात, जुगनू, चांदनी
शुक्रिया! मेरे खुदा सौगात का

फिर शफ़क़ ने दूर कर दी तीरगी
सुर्ख मुंह है फिर शरम से रात का


September 09, 2011

इस मरुस्थल को नदी की धार दो

गीली माटी हूँ, मुझे आकार दो
मेरे जीवन को कोई आधार दो

घाव दो या अश्रुओं का हार दो
जो उचित हो प्रेम में, उपहार दो

फिर धरा पर प्रेम बन बरसो कभी
इस मरुस्थल को नदी की धार दो

मोर को सावन, भंवर को फूल दो

सबको अपने हिस्से का संसार दो


स्वप्न के पंछी नयन-पिंजरे में हैं,
दो इन्हें आकाश का विस्तार दो

हूँ अगर जीवित तो तट पर क्या करूँ?

मेरी नैया को कोई मझधार दो

August 12, 2011

चीख बैठे बेज़ुबां तक

इस ज़मीं से आसमां तक
तू दिखे, देखूं जहां तक

उसने बेशक ना सुना हो
बात तो आई जुबां तक

मैं तो तन्हा था मुसाफिर
लुट गए याँ कारवां तक

यूँ चिराग-ए-शब बुझा था,
हाथ न आया धुआं तक

हद सितम की हो गयी अब,
चीख बैठे बेज़ुबां तक


July 16, 2011

एक कहानी याद किसे?

'राजा-रानी' याद किसे?
एक कहानी याद किसे?

बरसों बीते गाँव गए

बूढी नानी याद किसे?

किसने किसका तोडा था दिल

बात पुरानी याद किसे?

एक नदी सागर में खोई

वो दीवानी याद किसे?

बरसों बीते सूखे में, अब

बादल-पानी याद किसे?

नफरत हो बैठा है मज़हब,

प्यार के मानी याद किसे?

'साहिल' गुज़रा तूफां, तेरी

मेहरबानी याद किसे?

June 04, 2011

बन के 'साहिल' मैं फिर उभर जाऊं

तुम मिलो गर, तो मैं संवर जाऊँ
ज़ख्म हूँ इक, ज़रा सा भर जाऊँ


बन के दरिया भटक रहा कब से,
कोई सागर मिले, उतर जाऊँ

राह में फिर तेरा ही कूचा है
सोचता हूँ, रुकूँ, गुज़र जाऊँ?

भूखे बच्चों का सामना होगा
हाथ खाली हैं, कैसे घर जाऊँ?

दो घड़ी सांस भी न लेने दे,
वक़्त ठहरे, तो मैं ठहर जाऊँ

डूब जाऊं अगर तूफानों में

बन के 'साहिल' मैं फिर उभर जाऊं 


April 27, 2011

OBO live पर पूर्वप्रकाशित!


अँधेरा है नुमायाँ बस्तियों में
उजाले कैद हैं कुछ मुट्ठियों में

ये पीकर तेल भी, जलते नहीं हैं
लहू भरना ही होगा अब दीयों में

फ़लक पर जो दिखा था एक सूरज
कहीं गुम हो गया परछाइयों में

तेरी महफ़िल से जी उकता गया है,
सुकूँ मिलता है बस तन्हाईयों में

लिए जाता हूँ कश, मैं फिर लिए हूँ
तेरी यादों की 'सिगरेट' उँगलियों में

उतरना ध्यान से दरिया में 'साहिल'

मगरमच्छ भी छुपे हैं, मछलियों में 


March 26, 2011

ज़िन्दगी तूने हमें ऐसे चुभाये हैं गुलाब

हमराही पर पूर्वप्रकाशित

 
कब से ये काँटों में हैं, क्यों ज़ख्म खाए हैं गुलाब?
अपने खूँ के लाल रंगों में नहाये हैं गुलाब।


फर्क इतना है हमारी और उसकी सोच में,
उसने थामी हैं बंदूकें, हम उठाये हैं गुलाब।


होश अब कैसे रहे, अब लड़खड़ाएँ क्यों न हम,
घोल कर उसने निगाहों में, पिलाये हैं गुलाब।


अब असर होता नहीं गर पाँव में काँटा चुभे,
ज़िन्दगी तूने हमें ऐसे चुभाये हैं गुलाब।


कुछ पसीने की महक, कुछ लाल मेरे खूँ का रंग,
तब कहीं जाकर ज़मीं ने ये उगाये हैं गुलाब।


खार होंगे, संग होंगे, और होगा क्या वहां?
इश्क की गलियों में 'साहिल' किसने पाए हैं गुलाब?

February 28, 2011

त्रिवेणियाँ



आईने से मिला था मैं हँस कर
आँख रोती हुई दिखाई दी
                आईना झूठ बोलता ही नहीं



रात के साहिलों पे हम ने भी
ख्वाब के कुछ महल बनाये थे
                 मौज-ए-सुबह में बह गया सब कुछ



ओढ़ कर रात सो गया सूरज,
ऊंघते हैं ये सब सितारे भी 
                   रतजगा चाँद को मिला क्यों है?



आढ़ी तिरछी सी खींच दी किसने?
कुछ लकीरें मेरी हथेली पर
                    इनमें ढूँढू भला तुम्हें कैसे?



February 07, 2011

हर किसी से निबाह किसकी है?

जुस्तज़ू  किसकी, चाह किसकी है?
मुन्तज़िर ये निगाह किसकी
है?

जलते सहराओं में महकता
है,
तुझको ऐ गुल, पनाह किसकी है?

ये मुहब्बत गुनाह है, तो फिर
ज़िन्दगी बेगुनाह किसकी
है?

जिसको देखूँ है ग़मज़दा वो ही,
किसको पूछूँ के आह किसकी
है?

चाँद-तारे, चराग ना जुगनू,
रात इतनी तबाह किसकी है?

कुछ उदू भी जहां में हैं अपने
हर किसी से निबाह किसकी है? 

तेरी किस्मत तो है जुदा 'साहिल'
और इतनी स्याह किसकी है?

January 24, 2011

घर जलाने को लोग फिर आये


दिल दुखाने को लोग फिर आये
आज़माने को लोग फिर आये

एक किस्सा मैं भूल बैठा था,
दोहराने को लोग फिर आये

साथ देंगे ये बस घड़ी भर का
लौट जाने को लोग फिर आये

मंदिरों-मस्जिदों की बातों पर
घर जलाने को लोग फिर आये

हादसों को भुला के, महफ़िल में
हंसने-गाने को लोग फिर आये

फिर कतारें हैं दर पे कातिल के
सर कटाने को लोग फिर आये

'दूध के सब जले हैं' ये लेकिन,
धोखा खाने को लोग फिर आये

रास आया इन्हें न 'साहिल' तू,
डूब जाने को लोग फिर आये
 

January 17, 2011

उस को माज़ी का कुछ ख्याल रहा

तेरी यादों का दिल पे जाल रहा
ज़ख्म पर रेशमी रुमाल रहा

खुद ही दिल से तुझे निकाला था,
ये अलग बात के मलाल रहा

एक बस तुझ से ही तवक्को थी
ऐ खुदा! तू भी बेख्याल रहा

अच्छा होगा, कहा था वाइज़ ने
पहले जैसा मगर ये साल रहा

तूने लिक्खे तो हैं जवाब कई
दिल में लेकिन वही सवाल रहा

शुक्र है, हंस के वो मिला 'साहिल'
उस को माज़ी का कुछ ख्याल रहा

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तवक्को = उम्मीद, expectation , hope
वाइज़ = preacher
माज़ी = गुज़रा वक़्त, past



January 07, 2011

मेरे दामन से उलझे हैं, खिज़ां के ख़ार बाकी हैं

हमारी ज़िन्दगी के अब जो दिन दो चार बाकी हैं
न हो दीदार-ऐ-हुस्न-ऐ-यार तो बेकार बाकी हैं

न बदली फितरत-ऐ-लैला-ओ-कैस-ओ-शीरी-ओ-
फरहाद
वही आशिक हैं ज़िन्दा, उनके कारोबार बाकी हैं

मैं कैसे लुत्फ़ लूं यारो, अभी अब्र-ऐ-बहारां का
मेरे दामन से उलझे हैं, खिज़ां के ख़ार बाकी हैं

हबीबों के सितम से इस कदर घबरा न मेरे दिल!
अभी तो इस जहाँ में कुछ मेरे अगयार बाकी हैं

ऐ 'साहिल', इस जहाँ में बस तेरी हस्ती इसी से है
के तू बाकी है जब तक ये तेरे अशआर बाकी हैं



खार = कांटें
फितरत = nature
अब्र-ऐ-बहारां = बहार के बादल
हबीब = दोस्त
अगयार = दुश्मन, rival
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