उसकी चौखट रब है अपना
उल्फत ही मज़हब है अपना
दुनिया अपनी, दुनिया के हम
अपना क्या है? सब है अपना!
वो जो मीठा मीठा बोले
उसका कुछ मतलब है अपना
उसकी यादों में खोया है
अपना दिल भी कब है अपना?
सांसों की डोरी पर चलना
जीना भी, करतब है अपना
सोच को मिलता नहीं कभी सुकून, हैं कई सवाल हर जवाब में...... कश्तियाँ 'साहिल' तुझे हैं ढूँढतीं, और तू डूबा है खुद सैलाब में
December 22, 2010
December 11, 2010
वो खुदा है या है पत्थर, क्या पता?
सब झुकाते हैं जहाँ सर, क्या पता?
वो खुदा है या है पत्थर, क्या पता?
दोस्त भी दुश्मन भी सब हंसकर मिले
किसके पहलू में है खंज़र, क्या पता?
कब न जाने ख़त्म होगा ये सफ़र?
लौट के कब जायेंगे घर, क्या पता?
आज मेरी दोस्त है तू ज़िन्दगी
कल दिखाए कैसे मंज़र, क्या पता?
क़त्ल मुझ को वो नहीं कर पायेगा
चाहता है वो मुझे, पर क्या पता?
कब बहा ले जाएँ 'साहिल' ये तुझे,
नीयत-ऐ-मौज-ऐ-समंदर, क्या पता?
वो खुदा है या है पत्थर, क्या पता?
दोस्त भी दुश्मन भी सब हंसकर मिले
किसके पहलू में है खंज़र, क्या पता?
कब न जाने ख़त्म होगा ये सफ़र?
लौट के कब जायेंगे घर, क्या पता?
आज मेरी दोस्त है तू ज़िन्दगी
कल दिखाए कैसे मंज़र, क्या पता?
क़त्ल मुझ को वो नहीं कर पायेगा
चाहता है वो मुझे, पर क्या पता?
कब बहा ले जाएँ 'साहिल' ये तुझे,
नीयत-ऐ-मौज-ऐ-समंदर, क्या पता?
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November 24, 2010
ख़त तुझे मैंने बेहिसाब लिखे
कोई ऐसी भी इक किताब लिखे
सब सवालों के सब जवाब लिखे
हमने काली स्याह रात में भी
जगमगाते हुए से ख्वाब लिखे
कोई चेहरा भला पढूं कैसे
सबके चेहरों पे हैं नकाब लिखे
अब यहाँ हो रही नीलाम कलम
कौन है जो के इन्कलाब लिखे
कोई माली है जो नसीब लिखे
कहीं कांटे कहीं गुलाब लिखे
ये अलग बात, भेजता ही नहीं
ख़त तुझे मैंने बेहिसाब लिखे
जाने 'साहिल' तुझे हुआ क्या है
इक ज़रा मौज को सैलाब लिखे
सब सवालों के सब जवाब लिखे
हमने काली स्याह रात में भी
जगमगाते हुए से ख्वाब लिखे
कोई चेहरा भला पढूं कैसे
सबके चेहरों पे हैं नकाब लिखे
अब यहाँ हो रही नीलाम कलम
कौन है जो के इन्कलाब लिखे
कोई माली है जो नसीब लिखे
कहीं कांटे कहीं गुलाब लिखे
ये अलग बात, भेजता ही नहीं
ख़त तुझे मैंने बेहिसाब लिखे
जाने 'साहिल' तुझे हुआ क्या है
इक ज़रा मौज को सैलाब लिखे
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November 15, 2010
ये चार दिन की चांदनी अच्छी नहीं लगती मुझे
आँखों मैं तेरे बेबसी अच्छी नहीं लगती मुझे
इतना न रो के ये नमी अच्छी नहीं लगती मुझे
फिर इस अँधेरी रात में, सोना नहीं भाता मुझे
ये चार दिन की चांदनी अच्छी नहीं लगती मुझे
खोया हूँ उसकी याद में, बाद-ऐ-सबा न शोर कर
वक़्त-ऐ-इबादत दिल्लगी अच्छी नहीं लगती मुझे
तेरे लिए छुपता फिरूं मैं कब तलक यूँ मौत से
इतनी तो तू ऐ ज़िन्दगी! अच्छी नहीं लगती मुझे
मैंने ये पूछा 'आप क्यों पढ़ते नहीं मेरी ग़ज़ल?'
वो हंस के बोले 'बस यूँ ही, अच्छी नहीं लगती मुझे'
कहता है दिल की बात क्यों 'साहिल' भला तू गैर से,
बस इक यही आदत तेरी अच्छी नहीं लगती मुझे
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इतना न रो के ये नमी अच्छी नहीं लगती मुझे
फिर इस अँधेरी रात में, सोना नहीं भाता मुझे
ये चार दिन की चांदनी अच्छी नहीं लगती मुझे
खोया हूँ उसकी याद में, बाद-ऐ-सबा न शोर कर
वक़्त-ऐ-इबादत दिल्लगी अच्छी नहीं लगती मुझे
तेरे लिए छुपता फिरूं मैं कब तलक यूँ मौत से
इतनी तो तू ऐ ज़िन्दगी! अच्छी नहीं लगती मुझे
मैंने ये पूछा 'आप क्यों पढ़ते नहीं मेरी ग़ज़ल?'
वो हंस के बोले 'बस यूँ ही, अच्छी नहीं लगती मुझे'
कहता है दिल की बात क्यों 'साहिल' भला तू गैर से,
बस इक यही आदत तेरी अच्छी नहीं लगती मुझे
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बाद-ऐ-सबा = सुबह की हवा, morning breeze
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October 21, 2010
त्रिवेणियाँ
भीगा भीगा है सुबह का आँचल
हर कली ओस में नहाई है
रात रोई है रात-भर शायद
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इस कदर स्याह है आज रात का रंग
चांदनी है न इक सितारा है
किसके अश्कों में घुल गया काजल
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बंद आँखों से सुन लिया मैंने
कुछ किताबों का इल्म लोगों से
अब में दैर-ओ-हरम में उलझा हूँ
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आज दिल की किताब झाड़ी तो
तेरी यादों की धूल उड़ती है
छींक तुझको भी आई तो होगी
हर कली ओस में नहाई है
रात रोई है रात-भर शायद
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इस कदर स्याह है आज रात का रंग
चांदनी है न इक सितारा है
किसके अश्कों में घुल गया काजल
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बंद आँखों से सुन लिया मैंने
कुछ किताबों का इल्म लोगों से
अब में दैर-ओ-हरम में उलझा हूँ
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आज दिल की किताब झाड़ी तो
तेरी यादों की धूल उड़ती है
छींक तुझको भी आई तो होगी
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September 28, 2010
ये कीलों से छलनी दीवारों से पूछो
उजालों की कीमत शरारों से पूछो
जलें उम्र भर जो, सितारों से पूछो
होता है क्या यारो, दर्द-ए-जुदाई
ये दरिया के दोनों किनारों से पूछो
क्यों गुलसितां में हैं लाशें गुलों की
ये अब के बरस तुम, बहारों से पूछो
टंगी है जो तस्वीर, कितनी है दिलकश
ये कीलों से छलनी दीवारों से पूछो
है 'साहिल' उन्हें तुमसे कितनी मुहब्बत
न यूँ आज़माओ, न यारों से पूछो
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शरारों = चिंगारियां
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September 13, 2010
नाखुदा ही कश्तियाँ डुबा गए
खवाब की तरह हमें भुला गए
अश्क बन के आँख में समां गए
रंजिशें दैर-ओ-हरम की थी मगर,
लोग मेरा मैकदा जला गए
खुद को भूल कर, खुदा तलाशने
लोग जाने सब कहाँ कहाँ गए
अश्क बन के आँख में समां गए
रंजिशें दैर-ओ-हरम की थी मगर,
लोग मेरा मैकदा जला गए
खुद को भूल कर, खुदा तलाशने
लोग जाने सब कहाँ कहाँ गए
उम्र भर बचा किये तूफ़ान से
नाखुदा ही कश्तियाँ डुबा गए
ख़ुदकुशी से डर रहा था मैं ज़रा
दोस्त मेरे हौसला दिला गए
खुद से छुप रहा था मैं, तो आप क्यों?
हाथ में ये आइना थमा गए
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रंजिश = दुश्मनी
दैर-ओ-हरम = मंदिर और मस्जिद
नाखुदा = नाविक
दैर-ओ-हरम = मंदिर और मस्जिद
नाखुदा = नाविक
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September 03, 2010
इसलिए तो चाँद सारा गुम
मेरी किस्मत का सितारा गुम रहा
था मुझे जिसका सहारा गुम रहा
अब जनाज़े पर चला है शौक से
जीते जी क्यों शहर सारा गुम रहा
फिर नहीं अपनाएंगे ऐ दिल! तुझे
इस कदर जो तू दोबारा गुम रहा
ज़ुल्फ़ आधी खोल के वो सो गए
इसलिए तो चाँद सारा गुम रहा
जिसने वादा साथ चलने का किया
हमसफ़र वो ही हमारा गुम रहा
आखिरी शब तेरी गलियों में दिखा
और फिर 'साहिल' आवारा गुम रहा
था मुझे जिसका सहारा गुम रहा
अब जनाज़े पर चला है शौक से
जीते जी क्यों शहर सारा गुम रहा
फिर नहीं अपनाएंगे ऐ दिल! तुझे
इस कदर जो तू दोबारा गुम रहा
ज़ुल्फ़ आधी खोल के वो सो गए
इसलिए तो चाँद सारा गुम रहा
जिसने वादा साथ चलने का किया
हमसफ़र वो ही हमारा गुम रहा
आखिरी शब तेरी गलियों में दिखा
और फिर 'साहिल' आवारा गुम रहा
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कुछ तो खुदा अपनी ज़ुबानी, तुम कहो!
ऐ दोस्त! कुछ अपनी कहानी तुम कहो
मेरी वही है जिंदगानी, तुम कहो!
मेरी तो गुज़री उसकी गलियों में हुज़ूर
कुछ अपनी रफ्ता-ऐ-जवानी, तुम कहो!
वाइज़ से सुनते आये हैं किस्से तेरे
कुछ तो खुदा अपनी ज़ुबानी, तुम कहो!
उसका तो जाना तए ही था इक रोज़, फिर
क्यों आँख से बहता है पानी, तुम कहो!
कुछ तो अनोखी बात हो तुम में ज़रा
'साहिल' क्यों ग़ज़लें पुरानी, तुम कहो!
मेरी वही है जिंदगानी, तुम कहो!
मेरी तो गुज़री उसकी गलियों में हुज़ूर
कुछ अपनी रफ्ता-ऐ-जवानी, तुम कहो!
वाइज़ से सुनते आये हैं किस्से तेरे
कुछ तो खुदा अपनी ज़ुबानी, तुम कहो!
उसका तो जाना तए ही था इक रोज़, फिर
क्यों आँख से बहता है पानी, तुम कहो!
कुछ तो अनोखी बात हो तुम में ज़रा
'साहिल' क्यों ग़ज़लें पुरानी, तुम कहो!
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September 02, 2010
इंसानों ने महफ़िल में इंसान सजा के रक्खा
यूँ तो घर में, मंदिर में, भगवान् सजा के रक्खा है
बिकने को बाजारों में ईमान सजा के रक्खा है
तुम मानो या न मानो पर हमने ये भी देखा है
इंसानों ने महफ़िल में इंसान सजा के रक्खा है
दिल में इतने ग़म हैं फिर भी होंठ नहीं भूले हंसना
तेरी यादों से दिल का शमशान सजा के रक्खा है
मेरी ग़ज़लें मेरे नगमे काश के तू भी पढ़ लेता
मैंने तेरी खातिर ये दीवान सजा के रक्खा है
'साहिल' अपनी कश्ती कैसे पार भला अब उतरेगी
मौजों ने जो सीने पर तूफ़ान सजा के रक्खा है
बिकने को बाजारों में ईमान सजा के रक्खा है
तुम मानो या न मानो पर हमने ये भी देखा है
इंसानों ने महफ़िल में इंसान सजा के रक्खा है
दिल में इतने ग़म हैं फिर भी होंठ नहीं भूले हंसना
तेरी यादों से दिल का शमशान सजा के रक्खा है
मेरी ग़ज़लें मेरे नगमे काश के तू भी पढ़ लेता
मैंने तेरी खातिर ये दीवान सजा के रक्खा है
'साहिल' अपनी कश्ती कैसे पार भला अब उतरेगी
मौजों ने जो सीने पर तूफ़ान सजा के रक्खा है
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बंजारों से बेघर अब तक
देखो कैसा मंज़र अब तक
सारी धरती बंजर अब तक
राम आयेंगे कितने युग में
आहिल्या है पत्थर अब तक
कुछ ख़्वाबों ने आँखें छोड़ी
बंजारों से बेघर अब तक
वो जाता हैं कातिल मेरा
हाथों मैं है खंज़र अब तक
'साहिल' उनका रस्ता देखा
वो न आये कहकर अब तक
सारी धरती बंजर अब तक
राम आयेंगे कितने युग में
आहिल्या है पत्थर अब तक
कुछ ख़्वाबों ने आँखें छोड़ी
बंजारों से बेघर अब तक
वो जाता हैं कातिल मेरा
हाथों मैं है खंज़र अब तक
'साहिल' उनका रस्ता देखा
वो न आये कहकर अब तक
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August 31, 2010
हैं कई सवाल हर जवाब में
ये लिखी है बात किस किताब में
आपको रहना है बस नकाब में
कर दिया काँटों ने जब लहू से लाल
हुस्न और बढ़ गया गुलाब में
होश में बस वो के जिस को तू मिला
सब भटकते हैं यहाँ सराब में
सोच को मिलता नहीं कभी सुकून
हैं कई सवाल हर जवाब में
सो सके न फिर कभी हम उम्र भर **
कर गए वादा-ऐ-वस्ल खवाब में
कश्तियाँ 'साहिल' तुझे हैं ढूँढतीं
और तू डूबा है खुद सैलाब में
आपको रहना है बस नकाब में
कर दिया काँटों ने जब लहू से लाल
हुस्न और बढ़ गया गुलाब में
होश में बस वो के जिस को तू मिला
सब भटकते हैं यहाँ सराब में
सोच को मिलता नहीं कभी सुकून
हैं कई सवाल हर जवाब में
सो सके न फिर कभी हम उम्र भर **
कर गए वादा-ऐ-वस्ल खवाब में
कश्तियाँ 'साहिल' तुझे हैं ढूँढतीं
और तू डूबा है खुद सैलाब में
***********************
सराब = mirage ; मर्गत्रिश्ना
** idea is taken from following of Ghalib's sher
ताफिर न इंतज़ार में नींद आये उम्र भर
आने का अहद कर गए, आये जो खवाब में
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August 30, 2010
कैसे कहूं तुमने मुझे बर्बाद किया है
ये ढंग मेरे क़त्ल का ईजाद किया है
मर जाऊं हिचकियों से इतना याद किया है
तूने सितम के या रहम सय्याद किया है
क्यों काट के पर अब मुझे आज़ाद किया है
जो तू नज़र से दूर है तो ग़म नहीं मुझे
तेरे ख्यालों ने ही मुझे शाद किया है
क्यों कर तुम्हे इलज़ाम दूं अपने नसीब का
कैसे कहूं तुमने मुझे बर्बाद किया है
कमाल का है आपका महल, बताईये?
कितनी जला के बस्तियां आबाद किया है
मर जाऊं हिचकियों से इतना याद किया है
तूने सितम के या रहम सय्याद किया है
क्यों काट के पर अब मुझे आज़ाद किया है
जो तू नज़र से दूर है तो ग़म नहीं मुझे
तेरे ख्यालों ने ही मुझे शाद किया है
क्यों कर तुम्हे इलज़ाम दूं अपने नसीब का
कैसे कहूं तुमने मुझे बर्बाद किया है
कमाल का है आपका महल, बताईये?
कितनी जला के बस्तियां आबाद किया है
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ईजाद किया है = ढूँढा है , discover
शाद = खुश, happy
शाद = खुश, happy
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ज़िन्दगी तो ज़िन्दगी भर अजनबी रही
इक कदम हमने ये पीछे गर हटा लिया
वो समझते हैं के हमने सर झुका लिया
तीरगी जब तीर सी चुभने लगी हमें
दिल में तेरी याद का, दीपक जला लिया
ज़िन्दगी तो ज़िन्दगी भर अजनबी रही
एक पल मैं मौत ने अपना बना लिया
बंदगी हमने तो की दैर-ओ-हरम बगैर
मूँद के आँखें कहीं भी सर झुका लिया
खुद के बारे मैं वो सबसे पूछता रहा
हाथ मैं उसने न लेकिन आईना लिया
हंस के उसने आपसे की दिल्लगी ज़रा
आपने 'साहिल' न सोचा, दिल लगा लिया!
**********************************************
तीरगी = अँधेरा, darkness
तीरगी = अँधेरा, darkness
दैर-ओ-हरम = मंदिर और मस्जिद
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