November 28, 2011

जिस्म में खंज़र उतरने लग गया

रंग सुबह का बिखरने लग गया
इक हसीं चेहरा उभरने लग गया

दूर हूँ जो आप से, तो यूँ लगा
वक़्त आहिस्ता गुज़रने लग गया

सीना-ए-शब पर खिला हैं चाँद फिर
जिस्म में खंज़र उतरने लग गया

इश्क में, बस ज़ख्म इक हासिल हुआ
ज़ख्म भी ऐसा के भरने लग गया

ज़िन्दगी का पैराहन जिस पल मिला,
वक़्त का चूहा कुतरने लग गया

आपका जो अक्स इस पर आ पड़ा
आइना देखो, सँवरने लग गया

November 08, 2011

दुनिया से हरदम मिलते हैं, खुद से लेकिन कम मिलते हैं


दुनिया से हरदम मिलते हैं
खुद से लेकिन कम मिलते हैं


आशिक हैं वो, सुबह-सवेरे
जिनके तकिये नम मिलते हैं

जब भी देखूं तेरा चेहरा
ज़ख्मों को मरहम मिलते हैं

वो क्या जाने प्यास हमारी,
जिनको जाम-ओ-जम मिलते हैं

तेरी यादों से, आँखों को,
बारिश के मौसम मिलते हैं

'साहिल', हैं सब कहने वाले
सुनने वाले, कम मिलते हैं


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