September 22, 2012

मुक्तक

हैरतों में ये उजाला पड़ गया
जुगनुओं के मुंह पे ताला पड़ गया
आपकी उजली हंसी को देखकर
चाँद का भी रंग काला पड़ गया

 
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खिज़ा में भी फिज़ा के कुछ इशारे मिल ही जाते हैं
अँधेरी रात हो कितनी, सितारे मिल ही जाते हैं
जिसे तेरी मुहब्बत के सहारे मिल गए, उसको
बहुत हो तेज़ तूफां, पर किनारे मिल ही जाते हैं



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जाने क्यूँ झूठा तराना लिख रहे हो
मौसमों को आशिकाना लिख रहे हो
इक परिंदे सा क़फ़स में कैद हूँ मैं
आप इसको आशियाना लिख रहे हो!
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