कोई ऐसी भी इक किताब लिखे
सब सवालों के सब जवाब लिखे
हमने काली स्याह रात में भी
जगमगाते हुए से ख्वाब लिखे
कोई चेहरा भला पढूं कैसे
सबके चेहरों पे हैं नकाब लिखे
अब यहाँ हो रही नीलाम कलम
कौन है जो के इन्कलाब लिखे
कोई माली है जो नसीब लिखे
कहीं कांटे कहीं गुलाब लिखे
ये अलग बात, भेजता ही नहीं
ख़त तुझे मैंने बेहिसाब लिखे
जाने 'साहिल' तुझे हुआ क्या है
इक ज़रा मौज को सैलाब लिखे
सोच को मिलता नहीं कभी सुकून, हैं कई सवाल हर जवाब में...... कश्तियाँ 'साहिल' तुझे हैं ढूँढतीं, और तू डूबा है खुद सैलाब में
November 24, 2010
November 15, 2010
ये चार दिन की चांदनी अच्छी नहीं लगती मुझे
आँखों मैं तेरे बेबसी अच्छी नहीं लगती मुझे
इतना न रो के ये नमी अच्छी नहीं लगती मुझे
फिर इस अँधेरी रात में, सोना नहीं भाता मुझे
ये चार दिन की चांदनी अच्छी नहीं लगती मुझे
खोया हूँ उसकी याद में, बाद-ऐ-सबा न शोर कर
वक़्त-ऐ-इबादत दिल्लगी अच्छी नहीं लगती मुझे
तेरे लिए छुपता फिरूं मैं कब तलक यूँ मौत से
इतनी तो तू ऐ ज़िन्दगी! अच्छी नहीं लगती मुझे
मैंने ये पूछा 'आप क्यों पढ़ते नहीं मेरी ग़ज़ल?'
वो हंस के बोले 'बस यूँ ही, अच्छी नहीं लगती मुझे'
कहता है दिल की बात क्यों 'साहिल' भला तू गैर से,
बस इक यही आदत तेरी अच्छी नहीं लगती मुझे
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इतना न रो के ये नमी अच्छी नहीं लगती मुझे
फिर इस अँधेरी रात में, सोना नहीं भाता मुझे
ये चार दिन की चांदनी अच्छी नहीं लगती मुझे
खोया हूँ उसकी याद में, बाद-ऐ-सबा न शोर कर
वक़्त-ऐ-इबादत दिल्लगी अच्छी नहीं लगती मुझे
तेरे लिए छुपता फिरूं मैं कब तलक यूँ मौत से
इतनी तो तू ऐ ज़िन्दगी! अच्छी नहीं लगती मुझे
मैंने ये पूछा 'आप क्यों पढ़ते नहीं मेरी ग़ज़ल?'
वो हंस के बोले 'बस यूँ ही, अच्छी नहीं लगती मुझे'
कहता है दिल की बात क्यों 'साहिल' भला तू गैर से,
बस इक यही आदत तेरी अच्छी नहीं लगती मुझे
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बाद-ऐ-सबा = सुबह की हवा, morning breeze
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ghazal
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