August 12, 2011

चीख बैठे बेज़ुबां तक

इस ज़मीं से आसमां तक
तू दिखे, देखूं जहां तक

उसने बेशक ना सुना हो
बात तो आई जुबां तक

मैं तो तन्हा था मुसाफिर
लुट गए याँ कारवां तक

यूँ चिराग-ए-शब बुझा था,
हाथ न आया धुआं तक

हद सितम की हो गयी अब,
चीख बैठे बेज़ुबां तक


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