इस ज़मीं से आसमां तक
तू दिखे, देखूं जहां तक
उसने बेशक ना सुना हो
बात तो आई जुबां तक
मैं तो तन्हा था मुसाफिर
लुट गए याँ कारवां तक
यूँ चिराग-ए-शब बुझा था,
हाथ न आया धुआं तक
हद सितम की हो गयी अब,
चीख बैठे बेज़ुबां तक
तू दिखे, देखूं जहां तक
उसने बेशक ना सुना हो
बात तो आई जुबां तक
मैं तो तन्हा था मुसाफिर
लुट गए याँ कारवां तक
यूँ चिराग-ए-शब बुझा था,
हाथ न आया धुआं तक
हद सितम की हो गयी अब,
चीख बैठे बेज़ुबां तक