tag:blogger.com,1999:blog-6651791047954252592024-02-20T08:26:56.117-08:00उभरता 'साहिल'सोच को मिलता नहीं कभी सुकून,
हैं कई सवाल हर जवाब में......
कश्तियाँ 'साहिल' तुझे हैं ढूँढतीं,
और तू डूबा है खुद सैलाब मेंUnknownnoreply@blogger.comBlogger33125tag:blogger.com,1999:blog-665179104795425259.post-3273958924128519332014-01-02T13:06:00.001-08:002014-01-02T13:24:53.172-08:00अगर ऐसा नहीं वैसा हुआ तो?
नही बरसी मगर छाई घटा तोज़मीं को दे गयी इक हौसला तो!
न कुछ मैंने किया इस कश्मकश में
अगर ऐसा नहीं वैसा हुआ तो?
किये हैं बंद सारे रास्ते, पर
जबर्दस्ती वो दिल में आ गया तो?
हुई मुद्दत तेरी जानिब चला था
मगर पहले सा है ये फासला तो!
ये माना मैंने तू ज़ालिम नहीं है
मगर चुप क्यूँ रहा, कुछ बोलता तो!
हसीं से ज़ख्म, यादें महकी महकी
मैं खुश हूँ वो मुझे कुछ दे गया तो!
Unknownnoreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-665179104795425259.post-8270867053479991492013-05-30T14:52:00.001-07:002013-05-30T14:53:09.911-07:00इन लबों की तिश्नगी न यूँ बुझादिल की आग को अभी न यूँ बुझाये उम्मीद आखिरी, न यूँ बुझा
जीत जाए फिर कहीं न तीरगी चाँद! अपनी चांदनी न यूँ बुझा
फिर मज़ा न प्यास का मैं ले सकूँइन लबों की तिश्नगी न यूँ बुझाऐतबार के दीये, ऐ बेवफा!फिर न जल सकें कभी, न यूँ बुझाचश्म-ए-आफताब मुझ से यूँ न फेर
राह की ये रौशनी, न यूँ बुझा
Unknownnoreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-665179104795425259.post-45911001505112217162012-09-22T06:45:00.000-07:002012-09-22T06:54:16.939-07:00मुक्तक
हैरतों में ये उजाला पड़ गया जुगनुओं के मुंह पे ताला पड़ गया आपकी उजली हंसी को देखकर चाँद का भी रंग काला पड़ गया
************************************
खिज़ा में भी फिज़ा के कुछ इशारे मिल ही जाते हैं
अँधेरी रात हो कितनी, सितारे मिल ही जाते हैंजिसे तेरी मुहब्बत के सहारे मिल गए, उसकोबहुत हो तेज़ तूफां, पर किनारे मिल ही जाते हैं
*************************************
जाने क्यूँ झूठा तरानाUnknownnoreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-665179104795425259.post-76169936242463410652012-04-25T08:10:00.001-07:002012-04-25T08:14:10.498-07:00आईने के पास जाने से बचे
रस्म-ए-दुनिया को निभाने से बचे,
किस तरह कोई ज़माने से बचे?
दोस्तों की सब हकीकत थी पता
इसलिए तो आज़माने से बचे
सांस को मैं रोक लूँ कुछ देर, पर
वक़्त कब ऐसे बचाने से बचे
वो भी खुल के कब मिला हमसे कभी हाल-ए-दिल हम भी सुनाने से बचे
जब भी 'साहिल' याद आयें हैं गुनाह,
आईने के पास जाने से बचे
Unknownnoreply@blogger.com15tag:blogger.com,1999:blog-665179104795425259.post-19635435862300358112012-01-04T07:59:00.001-08:002012-01-04T08:00:30.113-08:00मेरे लिए फिर सहर है आगे
बहुत सुहाना सफ़र है आगेके फिर उसी का शहर है आगेमुझे पता है, सियाह रातों मेरे लिए फिर सहर है आगे
लगी हुई है जो भीड़ इतनी,किसी दीवाने का घर है आगेसफ़र समंदर का, मत शुरू कर जो डूब जाने का डर है आगेये चलना 'साहिल' भी क्या है चलनाख्याल पीछे, नज़र है आगे
Unknownnoreply@blogger.com10tag:blogger.com,1999:blog-665179104795425259.post-36716802467334775872011-11-28T19:49:00.001-08:002011-11-28T19:52:26.810-08:00जिस्म में खंज़र उतरने लग गया
रंग सुबह का बिखरने लग गया इक हसीं चेहरा उभरने लग गया दूर हूँ जो आप से, तो यूँ लगावक़्त आहिस्ता गुज़रने लग गयासीना-ए-शब पर खिला हैं चाँद फिर
जिस्म में खंज़र उतरने लग गयाइश्क में, बस ज़ख्म इक हासिल हुआ ज़ख्म भी ऐसा के भरने लग गयाज़िन्दगी का पैराहन जिस पल मिला,वक़्त का चूहा कुतरने लग गया
आपका जो अक्स इस पर आ पड़ा
आइना देखो, सँवरने लग गयाUnknownnoreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-665179104795425259.post-25176255392828832212011-11-08T20:50:00.000-08:002011-11-28T19:56:12.713-08:00दुनिया से हरदम मिलते हैं, खुद से लेकिन कम मिलते हैं
दुनिया से हरदम मिलते हैंखुद से लेकिन कम मिलते हैं
आशिक हैं वो, सुबह-सवेरेजिनके तकिये नम मिलते हैं
जब भी देखूं तेरा चेहराज़ख्मों को मरहम मिलते हैं
वो क्या जाने प्यास हमारी,जिनको जाम-ओ-जम मिलते हैं
तेरी यादों से, आँखों को,बारिश के मौसम मिलते हैं
'साहिल', हैं सब कहने वालेसुनने वाले, कम मिलते हैं
Unknownnoreply@blogger.com21tag:blogger.com,1999:blog-665179104795425259.post-69662521016179078892011-10-07T21:21:00.000-07:002011-10-28T09:34:09.077-07:00मैं भी जिम्मेवार हूँ हालात का
क्यूँ बुरा मानूं किसी की बात का?मैं भी जिम्मेवार हूँ हालात काहुक्मरां उसको न माने दिल मेरासर पे जिसके ताज है खैरात का मै अभी सूखे से उबरा ही न था,घर में पानी आ गया बरसात का
फूल, भंवरे, रात, जुगनू, चांदनी
शुक्रिया! मेरे खुदा सौगात का फिर शफ़क़ ने दूर कर दी तीरगीसुर्ख मुंह है फिर शरम से रात का
Unknownnoreply@blogger.com18tag:blogger.com,1999:blog-665179104795425259.post-10675112058342837622011-09-09T15:05:00.000-07:002011-11-28T19:29:20.194-08:00इस मरुस्थल को नदी की धार दो
गीली माटी हूँ, मुझे आकार दोमेरे जीवन को कोई आधार दोघाव दो या अश्रुओं का हार दोजो उचित हो प्रेम में, उपहार दोफिर धरा पर प्रेम बन बरसो कभीइस मरुस्थल को नदी की धार दो मोर को सावन, भंवर को फूल दो सबको अपने हिस्से का संसार दो स्वप्न के पंछी नयन-पिंजरे में हैं,दो इन्हें आकाश का विस्तार दोहूँ अगर जीवित तो तट पर क्या करूँ? मेरी नैया को कोई मझधार दो
Unknownnoreply@blogger.com15tag:blogger.com,1999:blog-665179104795425259.post-83301241975508701332011-08-12T07:49:00.000-07:002011-08-12T07:49:40.444-07:00चीख बैठे बेज़ुबां तकइस ज़मीं से आसमां तक
तू दिखे, देखूं जहां तक
उसने बेशक ना सुना हो
बात तो आई जुबां तक
मैं तो तन्हा था मुसाफिर
लुट गए याँ कारवां तक
यूँ चिराग-ए-शब बुझा था,
हाथ न आया धुआं तक
हद सितम की हो गयी अब,
चीख बैठे बेज़ुबां तक
Unknownnoreply@blogger.com15tag:blogger.com,1999:blog-665179104795425259.post-82742225315523700592011-07-16T12:49:00.000-07:002011-07-16T12:49:48.853-07:00एक कहानी याद किसे?'राजा-रानी' याद किसे?
एक कहानी याद किसे?
बरसों बीते गाँव गए
बूढी नानी याद किसे?
किसने किसका तोडा था दिल
बात पुरानी याद किसे?
एक नदी सागर में खोई
वो दीवानी याद किसे?
बरसों बीते सूखे में, अब
बादल-पानी याद किसे?
नफरत हो बैठा है मज़हब,
प्यार के मानी याद किसे?
'साहिल' गुज़रा तूफां, तेरी
मेहरबानी याद किसे?Unknownnoreply@blogger.com11tag:blogger.com,1999:blog-665179104795425259.post-44573596966507093352011-06-04T09:59:00.000-07:002011-06-04T10:53:59.247-07:00बन के 'साहिल' मैं फिर उभर जाऊंतुम मिलो गर, तो मैं संवर जाऊँ
ज़ख्म हूँ इक, ज़रा सा भर जाऊँ
बन के दरिया भटक रहा कब से,
कोई सागर मिले, उतर जाऊँ
राह में फिर तेरा ही कूचा है
सोचता हूँ, रुकूँ, गुज़र जाऊँ?
भूखे बच्चों का सामना होगा
हाथ खाली हैं, कैसे घर जाऊँ?
दो घड़ी सांस भी न लेने दे,
वक़्त ठहरे, तो मैं ठहर जाऊँ
डूब जाऊं अगर तूफानों में
बन के 'साहिल' मैं फिर उभर जाऊं
Unknownnoreply@blogger.com13tag:blogger.com,1999:blog-665179104795425259.post-70602198167899060722011-04-27T11:35:00.000-07:002011-04-27T11:35:00.740-07:00OBO live पर पूर्वप्रकाशित!
अँधेरा है नुमायाँ बस्तियों में
उजाले कैद हैं कुछ मुट्ठियों में
ये पीकर तेल भी, जलते नहीं हैं
लहू भरना ही होगा अब दीयों में
फ़लक पर जो दिखा था एक सूरज
कहीं गुम हो गया परछाइयों में
तेरी महफ़िल से जी उकता गया है,
सुकूँ मिलता है बस तन्हाईयों में
लिए जाता हूँ कश, मैं फिर लिए हूँ
तेरी यादों की 'सिगरेट' उँगलियों में
उतरना ध्यान से दरिया में 'साहिल'
मगरमच्छ भी छुपे Unknownnoreply@blogger.com22tag:blogger.com,1999:blog-665179104795425259.post-82916446436839892882011-03-26T14:59:00.000-07:002011-03-26T14:59:33.773-07:00ज़िन्दगी तूने हमें ऐसे चुभाये हैं गुलाबहमराही पर पूर्वप्रकाशित
कब से ये काँटों में हैं, क्यों ज़ख्म खाए हैं गुलाब?
अपने खूँ के लाल रंगों में नहाये हैं गुलाब।
फर्क इतना है हमारी और उसकी सोच में,
उसने थामी हैं बंदूकें, हम उठाये हैं गुलाब।
होश अब कैसे रहे, अब लड़खड़ाएँ क्यों न हम,
घोल कर उसने निगाहों में, पिलाये हैं गुलाब।
अब असर होता नहीं गर पाँव में काँटा चुभे,
ज़िन्दगी तूने हमें ऐसे चुभाये हैं गुलाब।
कुछ पसीने की महक, Unknownnoreply@blogger.com23tag:blogger.com,1999:blog-665179104795425259.post-77268801837287292942011-02-28T11:04:00.000-08:002011-03-01T09:47:13.857-08:00त्रिवेणियाँ
आईने से मिला था मैं हँस कर
आँख रोती हुई दिखाई दी
आईना झूठ बोलता ही नहीं
रात के साहिलों पे हम ने भी
ख्वाब के कुछ महल बनाये थे
मौज-ए-सुबह में बह गया सब कुछ
ओढ़ कर रात सो गया सूरज,
ऊंघते हैं ये सब सितारे Unknownnoreply@blogger.com18tag:blogger.com,1999:blog-665179104795425259.post-81605150570552883232011-02-07T08:23:00.000-08:002011-02-07T08:23:13.513-08:00हर किसी से निबाह किसकी है?जुस्तज़ू किसकी, चाह किसकी है?
मुन्तज़िर ये निगाह किसकी है?
जलते सहराओं में महकता है,
तुझको ऐ गुल, पनाह किसकी है?
ये मुहब्बत गुनाह है, तो फिर
ज़िन्दगी बेगुनाह किसकी है?
जिसको देखूँ है ग़मज़दा वो ही,
किसको पूछूँ के आह किसकी है?
चाँद-तारे, चराग ना जुगनू,
रात इतनी तबाह किसकी है?
कुछ उदू भी जहां में हैं अपने
हर किसी से निबाह किसकी है?
तेरी किस्मत तो है जुदा 'साहिल'
और इतनी स्याह Unknownnoreply@blogger.com18tag:blogger.com,1999:blog-665179104795425259.post-12798291722088693032011-01-24T08:28:00.000-08:002011-01-24T08:28:04.761-08:00घर जलाने को लोग फिर आये
दिल दुखाने को लोग फिर आये
आज़माने को लोग फिर आये
एक किस्सा मैं भूल बैठा था,
दोहराने को लोग फिर आये
साथ देंगे ये बस घड़ी भर का
लौट जाने को लोग फिर आये
मंदिरों-मस्जिदों की बातों पर
घर जलाने को लोग फिर आये
हादसों को भुला के, महफ़िल में
हंसने-गाने को लोग फिर आये
फिर कतारें हैं दर पे कातिल के
सर कटाने को लोग फिर आये
'दूध के सब जले हैं' ये लेकिन,
धोखा खाने को लोग फिर आये
रास आया इन्हें न 'साहिल' Unknownnoreply@blogger.com20tag:blogger.com,1999:blog-665179104795425259.post-88568690079803496962011-01-17T06:20:00.000-08:002011-01-17T09:15:39.613-08:00उस को माज़ी का कुछ ख्याल रहातेरी यादों का दिल पे जाल रहा
ज़ख्म पर रेशमी रुमाल रहा
खुद ही दिल से तुझे निकाला था,
ये अलग बात के मलाल रहा
एक बस तुझ से ही तवक्को थी
ऐ खुदा! तू भी बेख्याल रहा
अच्छा होगा, कहा था वाइज़ ने
पहले जैसा मगर ये साल रहा
तूने लिक्खे तो हैं जवाब कई
दिल में लेकिन वही सवाल रहा
शुक्र है, हंस के वो मिला 'साहिल'
उस को माज़ी का कुछ ख्याल रहा
----------------------------------तवक्को = उम्मीद, expectation , Unknownnoreply@blogger.com27tag:blogger.com,1999:blog-665179104795425259.post-3088492260778299252011-01-07T09:03:00.000-08:002011-01-11T08:29:58.366-08:00मेरे दामन से उलझे हैं, खिज़ां के ख़ार बाकी हैंहमारी ज़िन्दगी के अब जो दिन दो चार बाकी हैं
न हो दीदार-ऐ-हुस्न-ऐ-यार तो बेकार बाकी हैं
न बदली फितरत-ऐ-लैला-ओ-कैस-ओ-शीरी-ओ-फरहाद
वही आशिक हैं ज़िन्दा, उनके कारोबार बाकी हैं
मैं कैसे लुत्फ़ लूं यारो, अभी अब्र-ऐ-बहारां का
मेरे दामन से उलझे हैं, खिज़ां के ख़ार बाकी हैं
हबीबों के सितम से इस कदर घबरा न मेरे दिल!
अभी तो इस जहाँ में कुछ मेरे अगयार बाकी हैं
ऐ 'साहिल', इस जहाँ में बस तेरी हस्ती इसी से Unknownnoreply@blogger.com11tag:blogger.com,1999:blog-665179104795425259.post-78855334369895388342010-12-22T09:26:00.000-08:002011-01-11T07:59:47.910-08:00उल्फत ही मज़हब है अपनाउसकी चौखट रब है अपना
उल्फत ही मज़हब है अपना
दुनिया अपनी, दुनिया के हम
अपना क्या है? सब है अपना!
वो जो मीठा मीठा बोले
उसका कुछ मतलब है अपना
उसकी यादों में खोया है
अपना दिल भी कब है अपना?
सांसों की डोरी पर चलना
जीना भी, करतब है अपनाUnknownnoreply@blogger.com18tag:blogger.com,1999:blog-665179104795425259.post-37586195354929086022010-12-11T12:19:00.000-08:002011-01-11T08:00:04.268-08:00वो खुदा है या है पत्थर, क्या पता?सब झुकाते हैं जहाँ सर, क्या पता?
वो खुदा है या है पत्थर, क्या पता?
दोस्त भी दुश्मन भी सब हंसकर मिले
किसके पहलू में है खंज़र, क्या पता?
कब न जाने ख़त्म होगा ये सफ़र?
लौट के कब जायेंगे घर, क्या पता?
आज मेरी दोस्त है तू ज़िन्दगी
कल दिखाए कैसे मंज़र, क्या पता?
क़त्ल मुझ को वो नहीं कर पायेगा
चाहता है वो मुझे, पर क्या पता?
कब बहा ले जाएँ 'साहिल' ये तुझे,
नीयत-ऐ-मौज-ऐ-समंदर, क्या पता?
Unknownnoreply@blogger.com12tag:blogger.com,1999:blog-665179104795425259.post-27695794789108550312010-11-24T07:35:00.000-08:002011-01-11T08:00:30.029-08:00ख़त तुझे मैंने बेहिसाब लिखेकोई ऐसी भी इक किताब लिखे
सब सवालों के सब जवाब लिखे
हमने काली स्याह रात में भी
जगमगाते हुए से ख्वाब लिखे
कोई चेहरा भला पढूं कैसे
सबके चेहरों पे हैं नकाब लिखे
अब यहाँ हो रही नीलाम कलम
कौन है जो के इन्कलाब लिखे
कोई माली है जो नसीब लिखे
कहीं कांटे कहीं गुलाब लिखे
ये अलग बात, भेजता ही नहीं
ख़त तुझे मैंने बेहिसाब लिखे
जाने 'साहिल' तुझे हुआ क्या है
इक ज़रा मौज को सैलाब लिखेUnknownnoreply@blogger.com16tag:blogger.com,1999:blog-665179104795425259.post-51118814793440392002010-11-15T07:32:00.000-08:002011-01-11T08:00:51.392-08:00ये चार दिन की चांदनी अच्छी नहीं लगती मुझेआँखों मैं तेरे बेबसी अच्छी नहीं लगती मुझे
इतना न रो के ये नमी अच्छी नहीं लगती मुझे
फिर इस अँधेरी रात में, सोना नहीं भाता मुझे
ये चार दिन की चांदनी अच्छी नहीं लगती मुझे
खोया हूँ उसकी याद में, बाद-ऐ-सबा न शोर कर
वक़्त-ऐ-इबादत दिल्लगी अच्छी नहीं लगती मुझे
तेरे लिए छुपता फिरूं मैं कब तलक यूँ मौत से
इतनी तो तू ऐ ज़िन्दगी! अच्छी नहीं लगती मुझे
मैंने ये पूछा 'आप क्यों पढ़ते नहीं मेरी ग़ज़ल?'
वो Unknownnoreply@blogger.com18tag:blogger.com,1999:blog-665179104795425259.post-20405453562127313812010-10-21T08:18:00.000-07:002010-11-15T07:18:09.982-08:00त्रिवेणियाँभीगा भीगा है सुबह का आँचल
हर कली ओस में नहाई है
रात रोई है रात-भर शायद
*************************
इस कदर स्याह है आज रात का रंग
चांदनी है न इक सितारा है
किसके अश्कों में घुल गया काजल
***********************
बंद आँखों से सुन लिया मैंने
कुछ किताबों का इल्म लोगों से
अब में दैर-ओ-हरम में उलझा हूँ
*************************
आज दिल की किताब झाड़ी तो
तेरी यादों की धूल उड़ती है
छींक तुझकोUnknownnoreply@blogger.com17tag:blogger.com,1999:blog-665179104795425259.post-73324600752891341512010-09-28T07:51:00.000-07:002011-11-28T19:30:16.588-08:00ये कीलों से छलनी दीवारों से पूछो
उजालों की कीमत शरारों से पूछो
जलें उम्र भर जो, सितारों से पूछो
होता है क्या यारो, दर्द-ए-जुदाई
ये दरिया के दोनों किनारों से पूछो
क्यों गुलसितां में हैं लाशें गुलों की
ये अब के बरस तुम, बहारों से पूछो
टंगी है जो तस्वीर, कितनी है दिलकश
ये कीलों से छलनी दीवारों से पूछो
है 'साहिल' उन्हें तुमसे कितनी मुहब्बत
न यूँ आज़माओ, न यारों से पूछो
******************************Unknownnoreply@blogger.com14