आईने से मिला था मैं हँस कर
आँख रोती हुई दिखाई दी
आईना झूठ बोलता ही नहीं
रात के साहिलों पे हम ने भी
ख्वाब के कुछ महल बनाये थे
मौज-ए-सुबह में बह गया सब कुछ
ओढ़ कर रात सो गया सूरज,
ऊंघते हैं ये सब सितारे भी
रतजगा चाँद को मिला क्यों है?
आढ़ी तिरछी सी खींच दी किसने?
कुछ लकीरें मेरी हथेली पर
इनमें ढूँढू भला तुम्हें कैसे?