September 03, 2010

इसलिए तो चाँद सारा गुम

मेरी किस्मत का सितारा गुम रहा
था मुझे जिसका सहारा गुम रहा

अब जनाज़े पर चला है शौक से

जीते जी क्यों शहर सारा गुम रहा

फिर नहीं अपनाएंगे  ऐ दिल! तुझे

इस कदर जो तू दोबारा गुम रहा

ज़ुल्फ़ आधी खोल के वो सो गए

इसलिए तो चाँद सारा गुम रहा

जिसने वादा साथ चलने का किया

हमसफ़र वो ही हमारा गुम रहा

आखिरी शब तेरी गलियों में दिखा

और फिर 'साहिल' आवारा गुम रहा

10 comments:

  1. साहिल साहब
    नमस्कार !
    बहुत शानदार रवां दवां ग़ज़ल लिखी है जनाब !
    मुबारकबाद क़बूल फ़रमाएं ।

    ज़ुल्फ़ आधी खोल के वो सो गए
    इसलिए तो चांद सारा गुम रहा


    मर गए हम इस शे'र पर …
    वैसे पूरी ग़ज़ल क़ाबिले-ता'रीफ़ है ।


    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  2. तिरे शेर कहने की अदा पर
    गो दिल हमारा गम हुआ....!!

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  3. राजेंद्र जी, नमस्कार
    आप जैसे फनकार को यहाँ पाकर बहुत ख़ुशी हुई. दाद के लिए शुक्रिया, आते रहिए.

    ...साहिल

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  4. भूतनाथ जी, आपकी टिपण्णी पढ़ के ख़ुशी हुई. और आपका नाम पढ़ कर थोडा डर लगा.
    आते रहिये, खुश रहिये!

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  5. अच्छी ग़ज़ल
    कापी नहीं हो रही वर्ना शेर अवश्य चुनकर भेजता

    फिर भी मेरा जवाब ही सही

    दोस्त जो इस बार आकर मिल गया
    वह न जाने अब तलक क्यों गुम रहा

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  6. जाहिद साहब, यहाँ आने का बहुत शुक्रिया. आपका जवाब भी लाजवाब लगा.
    Saahil

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  7. खूबसूरत!
    आशीष
    --
    बैचलर पोहा!!!

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  8. @Ashish

    दाद के लिए शुक्रिया !

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  9. aap ki gajal sach mai damdar hai
    subhkamnaye aapko

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  10. शुक्रिया दीप्ति जी

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यहाँ आने का और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियों से नवाज़ने का शुक्रिया!

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