जुस्तज़ू किसकी, चाह किसकी है?
मुन्तज़िर ये निगाह किसकी है?
जलते सहराओं में महकता है,
तुझको ऐ गुल, पनाह किसकी है?
ये मुहब्बत गुनाह है, तो फिर
ज़िन्दगी बेगुनाह किसकी है?
जिसको देखूँ है ग़मज़दा वो ही,
किसको पूछूँ के आह किसकी है?
चाँद-तारे, चराग ना जुगनू,
रात इतनी तबाह किसकी है?
कुछ उदू भी जहां में हैं अपने
हर किसी से निबाह किसकी है?
तेरी किस्मत तो है जुदा 'साहिल'
और इतनी स्याह किसकी है?
मुन्तज़िर ये निगाह किसकी है?
जलते सहराओं में महकता है,
तुझको ऐ गुल, पनाह किसकी है?
ये मुहब्बत गुनाह है, तो फिर
ज़िन्दगी बेगुनाह किसकी है?
जिसको देखूँ है ग़मज़दा वो ही,
किसको पूछूँ के आह किसकी है?
चाँद-तारे, चराग ना जुगनू,
रात इतनी तबाह किसकी है?
कुछ उदू भी जहां में हैं अपने
हर किसी से निबाह किसकी है?
तेरी किस्मत तो है जुदा 'साहिल'
और इतनी स्याह किसकी है?
बेहतरीन अभिव्यक्ति....
ReplyDeletewahh...!! kya khoob likha hai dost...shaandaar.
ReplyDeleteraat itni tabaah kiski hai....
kya misra hai....behad khoobsurat!
बहुत्र बढ़िया ग़ज़ल है साहिल भाई ...शेर रवायती हैं ..लेकिन फिर अब भी प्रासंगिक हैं...
ReplyDeleteक्या बात है भाई ...
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा शेर कहे हैं .... बेहतरीन ग़ज़ल ...
वाह साहिल साहब वाह
ReplyDeleteक्या गजल कही है बेहतरीन
इस शेर ने तो मन ही मोह लिया
ये मुहब्बत गुनाह है, तो फिर
जिन्दगी बेगुनाह किसकी है
इस गज़ल के लिए तो बस एक ही बात दिल से निकलती है.............. वाह।
ReplyDeleteye muhabbat gunah hai fir
ReplyDeletezindgi begunah kiski hai
behatareen dher...umda gazal.
ye gazal bhi khoob rahi bhai.............
ReplyDeletehar sher lajabab. mubarakvad kubul karen
ReplyDeleteवाह...बेहतरीन ग़ज़ल
ReplyDeleteबहुत अच्छी दिल को छू लेने वाली अभिब्यक्ति| धन्यवाद|
ReplyDeleteग़ज़ल पढकर एक शब्द बार-बार जुबां पर आ रहा है- वाह।
ReplyDeleteबहुत सुंदर ग़ज़ल के लिए बधाई।
बहुत खूब !! शुभकामनायें
ReplyDeleteउम्दा शेर ..बहुत सुंदर ............शुभकामनाएं
ReplyDeleteवाह साहिल साहब वाह... हर एक शेर अपने आप में लाजवाब है, और कुछ मिसरे तो बस दिल ही लिए जाते हैं...
ReplyDeleteतुझको ऐ गुल पनाह किसकी है... रात इतनी तबाह किसकी है... हर किसी से निबाह किसकी है...
और यह शेर... 'यह मुहब्बत गुनाह है तो फिर'... क्या कहने इस शेर के, मुक्कम्मल शेर, बेहतरीन ग़ज़ल !!!
बरखुदार आगे क्या कहूँ
ReplyDeleteइस शेर ने ही लूट लिया :
ये मुहब्बत गुनाह है, तो फिर
ज़िन्दगी बेगुनाह किसकी है?
बहुत दिलकश अंदाज है आपका
मुबारक हो
Bahut khubsurat gazal hai .
ReplyDeletemere blog par ijjat afjai ka bhaut shukriya.
वाह वाह. बहुत ही उम्दा गज़ल..
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