सब झुकाते हैं जहाँ सर, क्या पता?
वो खुदा है या है पत्थर, क्या पता?
दोस्त भी दुश्मन भी सब हंसकर मिले
किसके पहलू में है खंज़र, क्या पता?
कब न जाने ख़त्म होगा ये सफ़र?
लौट के कब जायेंगे घर, क्या पता?
आज मेरी दोस्त है तू ज़िन्दगी
कल दिखाए कैसे मंज़र, क्या पता?
क़त्ल मुझ को वो नहीं कर पायेगा
चाहता है वो मुझे, पर क्या पता?
कब बहा ले जाएँ 'साहिल' ये तुझे,
नीयत-ऐ-मौज-ऐ-समंदर, क्या पता?
दोस्त भी दुश्मन भी .......अच्छा लगा शेर , मुबारक हो
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत गज़ल ...
ReplyDeleteआज मेरी दोस्त है तू ज़िन्दगी... ज़िन्दगी की हकीकत बयां करता शेर,
ReplyDeleteबढ़िया ग़ज़ल...
ek ek sher chuninda hai....kya khoob kaha hai dost....bohot khoob...tooooooo good
ReplyDelete5.5/10
ReplyDelete"आज मेरी दोस्त है तू ज़िन्दगी
कल दिखाए कैसे मंज़र, क्या पता"
सुन्दर
सच में जीवन अनिश्चितता से भरा है.
अच्छी लगी ग़ज़ल
achchhe sher...
ReplyDeleteumda gazal...
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना कल मंगलवार 14 -12 -2010
ReplyDeleteको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.uchcharan.com/
bahut badhiyaa
ReplyDeleteबहुत खूब एक एक बात मुकम्मल
ReplyDeleteकितना प्यारा लिखते हो.एक एक शे'र दिल को छू जाने वाला है.
ReplyDeleteऔर एक बात बता दूँ मैं हर कहीं,हर किसी रचना के लिए नही लिख देती दिल छू गई.
'सब झुकाते है जहाँ सर,क्या पता
वो खुदा है या पत्थर ,क्या पता? देखो एक बार में तुम्हारा शे'र मुझे याद हो गया.सरलता,सहजता और स्मरणीय हो वो रचना अपने आप में अच्छी मानी जाती है.
आप तो शायरी के नरेश हो भाई
ReplyDeleteबहुत खूबियत है कलाम और कलम में
आप सबके कमेंट्स का बहुत शुक्रिया. यही मेरी उर्जा का स्रोत हैं..
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