January 04, 2012

मेरे लिए फिर सहर है आगे

बहुत सुहाना सफ़र है आगे
के फिर उसी का शहर है आगे

मुझे पता है, सियाह रातों
मेरे लिए फिर सहर है आगे

लगी हुई है जो भीड़ इतनी,
किसी दीवाने का घर है आगे

सफ़र समंदर का, मत शुरू कर
जो डूब जाने का डर है आगे

ये चलना 'साहिल' भी क्या है चलना
ख्याल पीछे, नज़र है आगे


10 comments:

  1. बहुत खूब ... क्या बात है साहिल जी .. मज़ा अ गया शेर पढ़ के .. और ये शेर .... लगी हुयी है भीड़ जो इतनी ... दिल में उतर गया ..
    आपको नए साल की मुबारकबाद ...

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  2. बहुत खूब. शानदार गज़ल.

    सादर.

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  3. छोटी बहर की बहुत सुन्दर ग़ज़ल रची है आपने!
    मकर संक्रान्ति की हार्दिक शुभकामनाएँ!

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  4. waah! kya baat hai bahut hi muda gazal hai.....mubaark....

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  5. bahut badiya ghazal saahil sahab, lagi huyi hai jo bheerh itni... kya umda sher hai... bahut bahut mubarak is behtareen ghazal ke liye !!!

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  6. प्रिय बंधुवर 'साहिल' जी
    सस्नेहाभिवादन !

    मुझे पता है सियाह रातों
    मेरे लिए फिर सहर है आगे

    आशा और उम्मीद की ऊर्जा से भरपूर शे'र

    पूरी ग़ज़ल काबिले-तारीफ़ है …

    शुभकामनाओं-मंगलकामनाओं सहित…
    -राजेन्द्र स्वर्णकार

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  7. वाह!!!!!!!!!!!!!!!!

    बेहद खूबसूरत गज़ल.........

    लाजवाब!!!

    अनु

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