बहुत सुहाना सफ़र है आगे
के फिर उसी का शहर है आगे
मुझे पता है, सियाह रातों
मेरे लिए फिर सहर है आगे
लगी हुई है जो भीड़ इतनी,
किसी दीवाने का घर है आगे
सफ़र समंदर का, मत शुरू कर
जो डूब जाने का डर है आगे
ये चलना 'साहिल' भी क्या है चलना
ख्याल पीछे, नज़र है आगे
के फिर उसी का शहर है आगे
मुझे पता है, सियाह रातों
मेरे लिए फिर सहर है आगे
लगी हुई है जो भीड़ इतनी,
किसी दीवाने का घर है आगे
सफ़र समंदर का, मत शुरू कर
जो डूब जाने का डर है आगे
ये चलना 'साहिल' भी क्या है चलना
ख्याल पीछे, नज़र है आगे
क्या बात है!
ReplyDeleteबहुत खूब ... क्या बात है साहिल जी .. मज़ा अ गया शेर पढ़ के .. और ये शेर .... लगी हुयी है भीड़ जो इतनी ... दिल में उतर गया ..
ReplyDeleteआपको नए साल की मुबारकबाद ...
बहुत खूब. शानदार गज़ल.
ReplyDeleteसादर.
achchi gazal hai bhai
ReplyDeleteछोटी बहर की बहुत सुन्दर ग़ज़ल रची है आपने!
ReplyDeleteमकर संक्रान्ति की हार्दिक शुभकामनाएँ!
waah! kya baat hai bahut hi muda gazal hai.....mubaark....
ReplyDeletenice :)
ReplyDeleteमिश्री की डली ज़िंदगी हो चली
bahut badiya ghazal saahil sahab, lagi huyi hai jo bheerh itni... kya umda sher hai... bahut bahut mubarak is behtareen ghazal ke liye !!!
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प्रिय बंधुवर 'साहिल' जी
सस्नेहाभिवादन !
मुझे पता है सियाह रातों
मेरे लिए फिर सहर है आगे
आशा और उम्मीद की ऊर्जा से भरपूर शे'र
पूरी ग़ज़ल काबिले-तारीफ़ है …
शुभकामनाओं-मंगलकामनाओं सहित…
-राजेन्द्र स्वर्णकार
वाह!!!!!!!!!!!!!!!!
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत गज़ल.........
लाजवाब!!!
अनु