September 03, 2010

कुछ तो खुदा अपनी ज़ुबानी, तुम कहो!

ऐ दोस्त! कुछ अपनी कहानी तुम कहो
मेरी वही है जिंदगानी, तुम कहो!

मेरी तो गुज़री उसकी गलियों में हुज़ूर

कुछ अपनी रफ्ता-ऐ-जवानी, तुम कहो!

वाइज़ से सुनते आये हैं किस्से तेरे

कुछ तो खुदा अपनी ज़ुबानी, तुम कहो!

उसका तो जाना तए ही था इक रोज़, फिर

क्यों आँख से बहता है पानी, तुम कहो!

कुछ तो अनोखी बात हो तुम में ज़रा

'साहिल' क्यों ग़ज़लें पुरानी, तुम कहो!

1 comment:

  1. वाइज़ से सुनते आये हैं किस्से तेरे,
    कुछ तो ख़ुदा अपनी ज़बानी तुम कहो...
    वाह, हासिल-ए-ग़ज़ल शेर !!!

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