September 02, 2010

बंजारों से बेघर अब तक

देखो कैसा मंज़र अब तक
सारी धरती बंजर अब तक

राम आयेंगे कितने युग में

आहिल्या है पत्थर अब तक

कुछ ख़्वाबों ने आँखें छोड़ी

बंजारों से बेघर अब तक

वो जाता हैं कातिल मेरा

हाथों मैं है खंज़र अब तक

'साहिल' उनका रस्ता देखा

वो न आये कहकर अब तक

1 comment:

  1. बेहद शानदार अलफ़ाज़ चुने हैं आपने छोटे बहर की इस खूबसूरत ग़ज़ल में और कमाल की बढ़िया लय है इस कलाम की...

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