दिल की आग को अभी न यूँ बुझा
ये उम्मीद आखिरी, न यूँ बुझा
जीत जाए फिर कहीं न तीरगी
चाँद! अपनी चांदनी न यूँ बुझा
फिर मज़ा न प्यास का मैं ले सकूँ
इन लबों की तिश्नगी न यूँ बुझा
ऐतबार के दीये, ऐ बेवफा!
फिर न जल सकें कभी, न यूँ बुझा
चश्म-ए-आफताब मुझ से यूँ न फेर
राह की ये रौशनी, न यूँ बुझा
आपने लिखा....
ReplyDeleteहमने पढ़ा....
और लोग भी पढ़ें;
इसलिए शनिवार 01/06/2013 को
http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
पर लिंक की जाएगी.
आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
लिंक में आपका स्वागत है .
धन्यवाद!
इन लबों की तिश्नगी यूं न बुझा ...
ReplyDeleteबहुत ही जलावाब शेर है आपकी इस उम्दा गज़ल का ... मज़ा आ गया साहिल साहब ..
सभी शेर बहुत उम्दा. बेहतरीन. बधाई.
ReplyDeletewaah,kamal ki gazal bhai
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