गीली माटी हूँ, मुझे आकार दो
मेरे जीवन को कोई आधार दो
घाव दो या अश्रुओं का हार दो
जो उचित हो प्रेम में, उपहार दो
फिर धरा पर प्रेम बन बरसो कभी
इस मरुस्थल को नदी की धार दो
मोर को सावन, भंवर को फूल दो
सबको अपने हिस्से का संसार दो
स्वप्न के पंछी नयन-पिंजरे में हैं,
दो इन्हें आकाश का विस्तार दो
हूँ अगर जीवित तो तट पर क्या करूँ?
मेरी नैया को कोई मझधार दो
मेरे जीवन को कोई आधार दो
घाव दो या अश्रुओं का हार दो
जो उचित हो प्रेम में, उपहार दो
फिर धरा पर प्रेम बन बरसो कभी
इस मरुस्थल को नदी की धार दो
मोर को सावन, भंवर को फूल दो
सबको अपने हिस्से का संसार दो
स्वप्न के पंछी नयन-पिंजरे में हैं,
दो इन्हें आकाश का विस्तार दो
हूँ अगर जीवित तो तट पर क्या करूँ?
मेरी नैया को कोई मझधार दो
This one is just AWESOME... can not word the real beauty and the wonderful rhythm that fills the heart when you recite this fabulous ghazal in beautiful Hindi language...
ReplyDeleteaadhaar do, uphaar do, nadi ki dhaar do, sansaar do, vistaar do, majhdaar do... bahut bahut sundar laya aur har doosri pankti ek ek sher ko poori tarah se mukammal banaati huyi...
best wishes for more and more such master pieces, from both of us...:)
Loved it..Very simple n loving.
ReplyDeleteसुन्दर आकांक्षाओंयुक्त बेहतरीन ग़ज़ल....
ReplyDeleteबहुत बारीक-सी कहन...मन को छूने वाली...
ReplyDeleteउम्दा .. लाजवाब
ReplyDeleteBahut sundar vaah..
ReplyDeletevery nice hindi poem........keep it up.
ReplyDeleteखूबसूरत ख्वाहिश!
ReplyDeleteआशीष
--
मैंगो शेक!!!
phir se man ko choo lene wali bahut pyari gazal hui hai bhai............
ReplyDeleteकिसी एक शेर को कैसे चिन्हित करूँ ....जब हर शेर दमदार है
ReplyDeleteउम्दा ग़ज़ल...
very impressive..
ReplyDelete♥
ReplyDeleteविशाल जी ,
बहुत ख़ूबसूरत है आपकी यह ग़ज़ल हमेशा की तरह …
मुकम्मल !
मुबारकबाद !
आपको सपरिवार
नवरात्रि पर्व की बधाई और
शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
बहुत सुन्दर भाव एवं शब्द संयोजन ....लाजबाब ..!
ReplyDeletebahut hi laajabaab rachna..dil ko chho gaya
ReplyDeleteabhar sadasya ban raha ho...
फिर धरा पर प्रेम बन बरसो कभी
ReplyDeleteइस मरुस्थल को नदी की धार दो
बहुत सुन्दर साहिल जी ..खुबसूरत भाव ...अपना स्नेह समर्थन हो सकें तो हमें भी देते रहें
भ्रमर ५